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Monday, December 31, 2012

रानीखेत ( Ranikhet ) → हिमालय का खूबसूरत पर्वतीय नगर (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..8)

Written by Ritesh Gupta

आप लोगो ने मेरा पिछला लेख (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..7) तो पढ़ा ही होगा, जिसमे मैंने नैनीताल का प्रसिद्ध मंदिर माँ नैनादेवी और कुमाऊँ का ही एक और प्रसिद्ध मंदिर श्री कैंची की यात्रा का उल्लेख किया था । इस तरह से अब हमारा लगभग नैनीताल और उसके आसपास के स्थलों का भ्रमण हो चुका था । अब चलते हैं नैनीताल शहर से बाहर और अपनी इस कुमाऊँ की श्रृंखला को भी आगे की तरफ अग्रसर करते हुए इस लेख में कुँमाऊ के प्रसिद्ध पर्वतीय नगर " रानीखेत " की यात्रा पर ले चलता हूँ ।

कैंची धाम बाबा नीव करौरी आश्रम के दर्शन करने के बाद हम लोग टैक्सी में बैठकर उसी सड़क मार्ग NH-87 पर चलते रहे । कुछ देर पहाड़ों में चलने के बाद कोसी नदी और उसकी घाटी दिखाई देना शुरू हो गयी । हम लोग भी कोसी नदी के साथ-साथ के सड़कमार्ग चलते रहे, रास्ते में कोसी नदी कभी सड़क के सामंन्तर और कभी पहाड़ों गहराई में चली जाती थी । बस यूँही कुछ देर पहाड़ और नदी का अवलोकन करते हुए, कुछ किलोमीटर बाद एक स्थान ऐसा आया जहाँ पर कोसी नदी पर सड़क के बायीं तरफ एक पुल बना हुआ था । यह नदी पुल NH-87 का ही एक हिस्सा हैं और रानीखेत जाने का रास्ता भी, बिना मुड़े सीधा रास्ता अल्मोड़ा राज्ज्यीय मार्ग SH-37 हैं, जो कुमाऊँ के एक महत्वपूर्ण नगर अल्मोड़ा को जोड़ता हैं । खैर अपनी योजनानुसार हम लोगो को सर्वप्रथम रानीखेत जाना था, सो सड़क की बायीं तरफ के कोसी नदी के पुल को पार कर हम लोग इसी रास्ते पर चलते रहे ।
Mountain View from NH-87 Toward Ranikhet (दिल को लुभाते यह सुन्दर नज़ारे…)

Monday, December 17, 2012

नैनीताल ( Nainital )→ माँ नैनादेवी मंदिर और श्री कैंची धाम (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..7)

प्रिय मित्रों और पाठकगणों को नमस्कार !


आप लोगो ने मेरा पिछला लेख (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..6) तो पढ़ा ही होगा, जिसमे मैंने भीमताल के पास के हनुमानगढ मंदिर और सातताल की यात्रा का उल्लेख किया था । इस तरह से अब हमारा नैनीताल के मुख्य स्थल, नैनीताल के आसपास की स्थल और झीलो का भ्रमण हो चुका था, अब हमने अपना विचार कुमाऊँ के अन्य प्रसिद्ध स्थलो को देखना का बनाया । अपनी इस कुमाऊँ की श्रृंखला को आगे तरफ अग्रसर करते हुए इस लेख में सबसे पहले नैनीताल के मुख्य स्थल शक्तिपीठ माँ नैनीदेवी के मंदिर और उसके बाद आपको कुमाऊँ यात्रा के अन्य स्थलों पर ले चलता हूँ ।

Magnetic Look of Naini Lake from Mall Road Side (मन को प्रफुल्लित करता यह नैनी झील का सलोना रूप )

Friday, November 23, 2012

सातताल ( Sattal) → कुमाऊँ की सबसे सुन्दर झील (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..6)


प्रिय मित्रों और पाठकगणों को नमस्कार !

आप लोगो ने मेरा पिछला लेख (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..5) तो पढ़ा ही होगा, जिसमे मैंने नैनीताल क्षेत्र की दो प्रमुख झील, भीमताल और नौकुचियाताल की सैर का वर्णन किया था । अब अपनी इस कुमाऊँ की श्रृंखला को आगे तरफ अग्रसर करते हुए इस लेख में आपको ले चलता हूँ, भीमताल के पास स्थित “हनुमानगढ़ मंदिर” और प्रकृति की गोद में शांत वातावण में स्थित सरोवर नगरी नैनीताल की सबसे सुन्दर झील “सातताल झील”
नौकुचिया झील पर काफी समय व्यतीत हो जाने के बाद समय को महत्व को समझते हुए अब हमारा यहाँ से चलने को समय हो गया था । हमारा टैक्सी चालक भी हमे ढूंढते हुए हमे बुलाने आ पंहुचा था । नौकुचिया झील की स्मृतियों को ह्रदय में कैद कर हम लोग अपनी टैक्सी में बैठ जिस रास्ते से आये तो उसी रास्ते से वापिस चल दिए । लगभग पांच किलीमीटर सफ़र करने के बाद हम लोग भीमताल के उसी स्थान पर पहुँच गए जहाँ से हम भीमताल से चले थे । भीमताल पर रुकने का हमारा कोई मतलब नहीं था, सो हम लोग झील के किनारे-किनारे झील का अवलोकन करते हुए और फिर उसके बाद भीमताल के बायपास वाले रास्ते से न होकर पुराने वाले रास्ते पर चलते रहे । कुछ देर चलने के बाद दूर से ही एक श्री हनुमान जी आदमकद मूर्ति नजर आने लगी । धीरे-धीरे हम लोग उस मूर्ति के पास तक पहुँच गए, यह आदमकद मूर्ति एक मंदिर के प्रांगण स्थापित थी । हमारे कार चालक ने कार को सड़क के किनारे लगा दिया और कहा कि आप लोग जल्दी से दर्शन करके आ जाओ, इस समय छह बज रहे और हम लोगो को अभी सातताल भी जाना हैं ।

हनुमानगढ़  मंदिर (Hanumangarh Temple) के दर्शन :→

A large statue of Sri Hanuman jI at Hanumangarh Temple Near Bhimtal (भीमताल के पास हनुमानगढ़ मंदिर में स्थापित श्री हनुमानजी की मूर्ति)

Saturday, October 20, 2012

नौकुचियाताल (Naukuchiya Taal) → नौ कोने वाली सुन्दर झील ( (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..5)


आप लोगो ने मेरा पिछला लेख (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..4) तो पढ़ा ही होगा, जिसमे मैंने नैनीताल के पास स्थित कुमाऊं की सबसे बड़ी झील भीमताल  झील का वर्णन किया था ।  अब अपनी इस कुमाऊँ की श्रृंखला को आगे अग्रसर करते हुए आज की इस लेख में आपको ले चलता हूँ, नैनीताल के पहाड़ियों में प्रकृति के  गोद में बसे  → नौकुचियाताल झील की सैर पर ।

भीमताल झील के अच्छे से दर्शन करने के पश्चात समय के मूल्य को समझते हुए, हम लोग जल्द ही टैक्सी में बैठकर पार्किग के पास से ही बाये वाले रास्ते से होते हुए अपने अगले गंतव्य स्थल नौकुचियाताल की तरफ कूच कर गए ।


Road Map From Bhimtal to NaukuchiaTal → 5KM 
(भीमताल से नौकुचिया ताल का एक सड़क नक्शा )
नौकुचियाताल झील (NaukuchiaTal Lake) की सैर 

पहाड़ों के हरे-भरे सीढ़ीदार खेत और हरियाली से घिरे बलखाती पक्की सड़क मार्ग से होते हुए, हम लोगो को कुछ मिनिटो के सफ़र के बाद शांत वातावरण में चारों से हरी-भरी पहाड़ियों से घिरे नौकुचियाताल के दर्शन हो ही जाते हैं । भीमताल से नौकुचिया ताल करीब पांच किलोमीटर और नैनीताल से करीब 26 किमी० दूर स्थित हैं । भीमताल से नौकुचियाताल के बीच रास्ते में एक दो गाँव भी पड़ते हैं, जहाँ पर हरे-भरे खेतों के द्रश्य ही नजर आते हैं ।

Monday, October 8, 2012

भीमताल ( Bheemtal )→ सुन्दर टापू वाली कुमायूं की सबसे बड़ी झील (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..4)


आप लोगो ने मेरा पिछला लेख (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..3) तो पढ़ा ही होगा, जिसमे मैंने नैनीताल के मुख्य स्थलों की सैर का वर्णन किया था । महान हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित नैनीताल को प्रकृति ने हरी-भरी, नयनाभिराम वादियों के अलावा नैनीताल में और उसके आसपास के कई जगह पर और भी मीठे पानी की सुन्दर झीले प्रदान की हैं, इन्ही झीलों के अधिकता के कारण नैनीताल को “झीलों की नगरी” या “सरोवर नगरी” भी कहा जाता हैं । नैनीताल परिक्षेत्र में पहाड़ों के बीच सुन्दर वादियों में स्थित झीलों का भ्रमण किये बिना नैनीताल की यात्रा लगभग अधूरी ही रहती हैं । अब अपनी इस कुमाऊँ की श्रृंखला को आगे अग्रसर करते हुए आज की इस लेख में आपको ले चलता हूँ, नैनीताल के आसपास के इलाके में स्थित अदभुत और मन को आत्मविभोर करने वाली प्रकृति की गोद में बसी → झीलों की सैर पर ।

हिमालय दर्शन के बाद हमारा अगला गंतव्य स्थल भीमताल झील था । दोपहर के साढ़े तीन का समय हो रहा था, और इस समय हम लोग तल्लीताल के चौराहे पर पहुँच गए थे । यहाँ से भीमताल जाने के लिए टैक्सी चालक ने कार को बांयी तरफ के भोवाली वाले रास्ते पर ले लिया । यह रास्ता भी काफी साफ़-सुधरा, गड्डे रहित सपाट सड़क,  सड़क के किनारे परिवहन संबंधी चिन्हो का उपयोग और साथ में वादियों के खूबसूरत नजारो से भरा पड़ा था ।

Wednesday, September 19, 2012

नैनीताल ( Nainital ) → शहर के देखने योग्य सुन्दर स्थल (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…3)

आप लोगो ने मेरा पिछला लेख   (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..2) तो पढ़ा ही होगा, जिसमे मैंने नैनीताल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ आपके सम्मुख रखी थी और इको केव पार्क की सैर का वर्णन किया था । अब अपनी इस कुमाऊँ की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज की इस लेख में आपको ले चलता हूँ, नैनीताल के पहाड़ों में बसे और भी विभिन्न → ” खूबसूरत स्थलों की सैर ” पर ।

इको केव पार्क का अवलोकन करने बाद हम लोग उसी कालाढूंगी वाले मार्ग से होते हुए लवर्स पॉइंट की तरफ चल दिए । नैनीताल का यह लहराता और घुमावदार रास्ता बड़ा ही सुहाना और मन को प्रसन्नचित्त करने वाला था । सड़क किनारे की पहाड़िया घने हरे-भरे पहाड़ी पेड़-पौधे लदे पड़े थे, ऐसा लग रहा था कि जैसे प्रकृति ने अपना सारा हरा रंग यही उढ़ेल दिया हो और उस हरियाली के बीच बने घर-स्कूल बड़े ही आकर्षक लग रहे थे । जब ठंडी हवा इन पहाड़ी पेड़-पौधे बीच से तेज आवाज के साथ गुजरती तब प्रकृति के एक मधुर संगीत का आभास हो जाता था ।
Amazing view of greenery nature of hills 
(हरियाली युक्त पहाड़ों के बीच बसे इन घरों में कौन नहीं बसना चाहेगा….)

Sunday, September 9, 2012

गोवर्धन (Goverdhan)→ ब्रज प्रदेश की पवित्र भूमि (पवित्र स्थल भक्ति यात्रा)

Written By Ritesh Gupta
जय श्री कृष्णा ….राधे-राधे…!
मित्रों ! आज मैं एक और नई श्रृंखला शुरू करने जा रहा हूँ, जिसका नाम हैं → पवित्र स्थल भक्ति यात्रा । इस श्रृंखला में मैं आपको समय-समय पर मेरे द्वारा किये गए पवित्र स्थलो के दर्शन लाभ का वर्णन लेखो के माध्यम से कराउंगा । आज के इस श्रृंखला के प्रथम लेख में मैं आपको ले चलता हूँ ……..भगवान श्री कृष्णजी की लीलास्थली ब्रज प्रदेश के पावन भूमि पर बसे परम पूजनीय पवित्र स्थल श्री गोवर्धन की यात्रा पर । इस यात्रा में मेरे साथ मेरे पिताजी, माताजी, मेरी धर्मपत्नी, और मेरे हर सफ़र के साथी मेरे दोनो बच्चे अंशिता और अक्षत शामिल थे ।

यह सप्ताहांत शनिवार का दिन था, अपने दिनभर काम-काज से घर लौटा तो घर के लोगो से सूचना मिली की कल रविवार को गोवर्धन दर्शन करने जाना हैं । मैंने कहा कि ,”अभी स्वास्थ्य ठीक नहीं हैं, कल की कल देखेंगे ” यह कहकर रात का खाना हम लोग सो गए । अगले दिन सुबह (26-अगस्त-2012, दिन रविवार) मेरी आँख जल्दी खुल गयी पर सभी घर के लोग अभी सोये पड़े थे । रात की बात याद आई तो मेरा मन भगवान श्री गिरिराज जी के दर्शन को आतुर हो उठा, फटाफट से सबको उठाया, चलने के लिए तैयार होने को कहा । इससे पहले मैं गोवर्धन नौ-दस साल पहले सात-आठ बार हो आया हूँ, और हर बार वहाँ की इक्कीस किलोमीटर की परिक्रमा भी लगा चुका हूँ और आज भगवान के अचानक बुलावे पर मेरा मन गोवर्धन जाने को आतुर हो उठा । वो कहा जाता हैं न जब तक भगवान न बुलाये तब तक उनके दर्शन नहीं होते तो आज हमारा भगवान के दरबार से बुलावा आया था । इस समय हिंदी कलेंडर के अनुसार पुरषोत्तम मास का (लौंद का महीना) माह चल रहा हैं और इस माह में गोवर्धन में भगवान श्री गिरिराज के दर्शन और गोवर्धन की परिक्रमा का विशेष महत्व माना जाता हैं । यह कहा जाता हैं कि इस माह में गोवर्धन की यात्रा करने से भक्तो को विशेष पुण्य लाभ की प्राप्ति होती हैं ।

गोवर्धन पर्वत धारण किये हुए भगवान श्री कृष्ण

Sunday, September 2, 2012

नैनीताल ( Nainital ) → हिमालय पर्वत का शानदार गहना (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का….2)

नमस्कार मित्रों ! आप लोगो ने मेरा पिछला लेख ” सुहाना सफ़र कुमाऊँ का….1″   तो पढ़ा ही होगा,  जिसमे मैंने दिल्ली से काठगोदाम और काठगोदाम से नैनीताल तक अपने सफ़र का वर्णन किया था । अब अपनी इस कुमाऊँ की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज की इस भाग में आपको ले चलता हूँ, नैनीताल के विभिन्न खूबसूरत और रोमांचल स्थलों की सैर → ” नैनीताल दर्शन “ पर ।

भौगोलिक और पौराणिक द्रष्टि से नैनीताल →

यात्रा वृतांत को आगे बढ़ाने से पहले थोड़ा सा नैनीताल के बारे में जान ले । उत्तरभारत के हिमालय पर्वतमाला की सुरम्य वादियों में स्थित नैनीताल भारत के सबसे खूबसूरत और प्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटन स्थलों में एक हैं, जो भारत के उत्तराखंड राज्य में कुमाऊँ मंडल के दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित हैं । नैनीताल की समुंद्रतल से ऊँचाई लगभग 1968 मीटर (6455फीट) हैं । समुंद्रतल से इतनी ऊँचाई और चारों हरियाली के कारण यहाँ का मौंसम हमेशा सुहावना और ठंडा बना रहता हैं । नैनीताल में प्रदेश का एक हाईकोर्ट भी स्थापित हैं जहाँ प्रदेश भर के वाद-विवाद का निपटारा किया जाता हैं । नैनीताल क्षेत्र में तालो और झीलों की अधिकता के कारण इसे झीलों की नगरी भी कहा जाता हैं । नैनीताल का मुख्य आकर्षण यहाँ की नैनी झील हैं, जो चारों ओर से हरे-भरे पेड़ो से लदे पहाड़ों से घिरा हुआ हैं । मुख्य नैनीताल शहर नैनी झील इर्द-गिर्द पहाड़ी पर बसा हुआ हैं । इन हरे-भरे पहाड़ों की परछाई हमेशा झील में पड़ती रहती हैं, जिस कारण से झील का स्वच्छ पानी हरे रंग का नजर आता हैं । प्रसिद्ध पर्यटक स्थल होने के कारण यहाँ पर साल भर सैलानियों का जमावबाड़ा लगा रहता हैं, मुख्तय गर्मियों के मौसम में यहाँ का मौसम सुहावना और ठंडा होने कारण लाखो के संख्या में यहाँ पर घूमने वालो की हलचल लगी रहती हैं ।

नैनीताल सबसे निकटवर्ती रेलवे स्टेशन काठगोदाम हैं । काठगोदाम रेलवे स्टेशन दिल्ली, बरेली, हावड़ा और लखनऊ रेल मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं । काठगोदाम से नैनीताल लगभग 34किमी० की दूरी पर स्थित हैं, जिसे टैक्सी या लोकल बसों की सहायता से आसानी से पूरा करके यहाँ पहुंचा जा सकता हैं । नैनीताल के दूरी देश के मुख्य शहर आगरा से 376किमी०, दिल्ली से 320किमी०, अलमोड़ा से 68किमी०, पातालभुवनेश्वर 188किमी०, मुक्तेश्वर से 52किमी०, हरिद्वार से 234किमी०, कर्णप्रयाग से 185किमी० और बरेली से 190किमी० हैं ।

Naini Lake & Tiffin Top (Dorothy’s Seat) Hill View from Hotel Paryatak ( बड़े ही सुहाने लगते हैं यह झील और पहाड़ )

Sunday, August 12, 2012

नैनीताल ( Nainital ) → प्रसिद्ध पर्वतीय नगर की रेलयात्रा (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....1)

नमस्कार मित्रों ! अपनी पिछ्ली श्रृंखला  सुहाना सफ़र मनाली का    के समापन के बाद आज मैं एक नई श्रृंखला शुरू करने जा रहा हूँ → सुहाना सफ़र कुमाऊँ का ” । जैसा की हम जानते हैं कि भारत का सत्ताईसवाँ राज्य देवभूमि उत्तराखंड भारत के सबसे खूबसूरत और प्रकृति संपन्न राज्यों में एक हैं और प्रकृति में इसे अपने हाथो से बखूबी सवारा और संजोया हैं, या फिर यह कह लो कि उत्तराखंड में आकर हम लोगो को प्रकृति के विराट स्वरूप के दर्शन हो जाते हैं । उत्तराखंड राज्य को मंडल के आधार पर दो भागो में विभक्त किया गया हैं, पहला गढ़वाल और दूसरा कुमाऊँ । गढ़वाल मंडल में सात (देहरादून, उत्तरकाशी, हरिद्वार, रुद्रप्रयाग, चमोली, पौड़ी और टिहरी जिले) और कुमाऊँ मंडल में छह (नैनीताल, अलमोड़ा, पित्थौरागढ़, चम्पावत, उधमसिंह नगर और बागेश्वर जिले) जिले आते हैं । इस नई श्रृंखला में आपको अपने द्वारा की गयी उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल कुछ जगहों की यात्रा के बारे में अपना अनुभव कुछ कड़ियों के माध्यम से प्रस्तुत करूँगा । आज की इस कड़ी में, मैं आप लोगो को ले चलता हूँ →  दिल्ली से काठगोदाम की रेल यात्रा और काठगोदाम से नैनीताल की टैक्सी यात्रा पर ।

पेड़ पौधे के साये से नैनी झील का रूप ही निराला दिखता हैं………

Monday, July 16, 2012

मनिकरण ( Manikaran )→ पवित्र स्थल का भ्रमण (एक सुहाना सफ़र मनाली का….6)

Written By - Ritesh Gupta 
 
नमस्कार दोस्तों ! पिछले लेख में मैंने आप लोगो को व्यास और पार्वती नदी घाटी के बीच बसे “पवित्र स्थल मनिकरण” के बारे में वताया था, जिसे आप मेरे पिछले लेख “एक सुहाना सफ़र मनाली का….5″ में पढ़ सकते हैं । आइये अब चलते हैं इस श्रृंखला के अंतिम लेख “पवित्र स्थल मनिकरण के भ्रमण” पर ।

सुबह मनाली से चलने के बाद कार की साहयता से तीन बजे के आसपास हम लोग मनिकरण पहुँच ही गए । मनिकरण में धूप तेज थी पर मौसम काफी ठंडा था, पूरी घाटी में पार्वती नदी का शोर किसी मधुर संगीत की तरह गुंजायमान था । यहाँ पहुँचने के बाद के सबसे पहले एक खाली स्थान देखकर कार को सड़क के किनारे लगा दिया और एक होटल की तलाश करने अपने छोटे भाई अनुज के साथ निकल पड़ा । कई होटल छानमारे पर सस्ता होटल हमें कही नहीं मिला, ज्यादातर सभी होटल के कमरे का किराया रु०1500/- प्रतिदिन से अधिक ही बताया जा रहा था और ऊपर से यह कह रहे थे जल्दी से यही कमरे ले लो नहीं तो सप्ताहांत होने के कारण दिल्ली वाले आ जायेगे और आपको फिर कोई कमरा भी नहीं मिलेगा । फिर भी हमने अपनी तलाश जारी रखी करीब आधे घंटे की मेहनत रंग लाई ही गयी और पार्वती नदी के किनारे टैक्सी स्टैंड से पहले एक होटल (अब नाम याद नहीं हैं) पहुँच गए ।


Manikaran Town in the Morning (सुबह के समय मनिकरण का नजारा )

होटल लगभग पूरा खाली था, कई सारे रूम देखने के बाद हमें उस होटल का एक कमरा पसंद आ गया, कमरा काफी सुव्यवस्थित और बड़ा था । कमरे की बालकनी से बहती पार्वती नदी का सुन्दर द्रश्य नजर आ रहा था और उस कमरे लगे बाथरूम भी काफी बड़ा और साफ़ सुधरा था । उसने हमें उस कमरे के रु.1200/- बताये और उससे एक रुपया भी नीचे करने को तैयार नहीं हुआ, उसने कहाँ की,”आपको अभी यह होटल खाली नजर आ रहा हैं, पर रात तक यह पूरा भर जायेगा ।” काफी कहने पर पर वो एक अतरिक्त बिस्तर देने को राजी हो गया था । सबसे अच्छी बात इस होटल की थी कि इसकी अपनी तीन या चार कार लायक पार्किंग की भी व्यवस्था थी । हमने होटल के उस कमरे को कुछ अग्रिम राशि देकर आरक्षित कर लिया । कार को होटल की पार्किंग में लगाकर कमरे में सारा सामान पंहुचा दिया । यहाँ के होटलों की एक खास बात यह की होटलो में गर्म पानी के लिए गीजर की कोई व्यवस्था नहीं हैं । यहाँ के होटलों में गर्म पानी की आपूर्ति नदी के उस पार स्थित गर्म कुंड से होती हैं, जो चार-पांच मिनट गर्म पानी का नल खुला छोड़ने पर गर्म पानी आने लगता हैं ।

लगभग एक घंटा सफ़र की थकावट उतारने के बाद हम लोग गर्म कुंड में नहाने के इरादे पार्वती नदी के दाई तरफ के मंदिर, पुराने बाज़ार की ओर चल दिया । टैक्सी स्टैंड के अंतिम छोर से पार्वती नदी को एक पुल की साहयता से पार किया । पुल के नीचे से अपने अथाह जलराशि के साथ रोद्र रूप में बहती पार्वती नदी काफी वेगमान, भयानक और मन को अति सुन्दर लग रही थी । पुल पार करने के बाद सबसे पहले प्राचीन श्री राम मंदिर नजर आया, इस मंदिर में गर्म कुंड के पानी में नहाने की व्यवस्था भी हैं । थोड़ा आगे बढ़ने पर नैना भगवती मंदिर हैं और वही पर एक छोटे से चौराहे पर लकड़ी का पुराना सुन्दर रथ जगन्नाथजी की यात्रा हेतु रखा हुआ था । चौराहे से आगे जाने पर प्राचीन मंदिर श्री रघुनाथ जी का आया हैं, इस मंदिर के बाहर बेहद ही गर्म उबलते पानी का एक चश्मा(कुंड) सड़क के समीप ही था, जिसमे से बहुत तेजी से गर्म भाप निकल रही थी । प्रकृति का यह चमत्कार देखकर कर हम प्रभु के सामने नतमस्तक हो गए । यह कुंड इतना गर्म था कि आप किसी कपड़ो में कच्चे चावल या चने बांधकर इस कुंड में छोड़ कुछ मिनटों में उबलकर पक जाते हैं । इसी उबलते चश्मे के पीछे नहाने का पानी से भरा हुआ एक स्नानागार कुंड बनाया हुआ था, पर इस स्नानागार का पानी अत्यधिक गर्म होने के कारण आज बंद था । यहाँ पर महिलाए और पुरुषों दोनो के लिए अलग-अलग नहाने कि व्यवस्था हैं । गर्म कुंड का पानी गंधक युक्त हैं और इस पानी में नहाने से चर्म सम्बन्धी सारे रोग दूर हो जाते हैं ।

Monday, July 9, 2012

मनिकरण ( Manikaran )→ पार्वती घाटी का पवित्र स्थल (एक सुहाना सफ़र मनाली का….5)

Written By Ritesh Gupta
नमस्कार दोस्तों ! पिछले लेख में मैंने आप लोगो को मनाली के सोलांग घाटी (Solang Valley) के यात्रा के बारे में वताया था, जिसे आप मेरे पिछले लेख एक सुहाना सफ़र मनाली का….4 में पढ़ सकते हैं । आइये अब चलते हैं व्यास और पार्वती नदी घाटी के बीच बसे “पवित्र स्थल मनिकरण की यात्रा “ पर ।

View Kullu City from MDR-29 (व्यास नदी के पार नजर आता खूबसूरत कुल्लू नगर)
दिन शुक्रवार, 25 जून 2010 को हम लोग सुबह 7:00 बजे के आसपास नींद उठ गए और मनाली की इस सुबह का स्वागत हुआ मूसलाधार वारिश से । हम लोग लगभग एक घंटे में अपने नित्यक्रम से निवृत हुए, तब तक बारिश हल्की पड़ चुकी थी और कुछ बूंदाबांदी ही सी हो रही थी । तेज बारिश पड़ने से मनाली मौसम बहुत ही रूमानी हो गया था और हवा में नमी का इजाफा भी पहले के अपेक्षा अधिक हो गया था । हम लोगो ने आज वशिष्ठजी जाने और वही गर्म कुंड में नहाने की योजना बना रखी थी । कार चालक को जगाकर उसे चलने के लिए कहा तो उसने कहा की आज मनिकरण चलते हैं, वह जगह वशिष्ठजी से भी अच्छी हैं और कई गर्म पानी के कुंड भी वहाँ यदि एक-डेढ़ घंटे बाद भी हम लोग निकलेंगे तो सही समय पर मनिकरण पहुँच जायेगे । हमें उसकी बात जंच गयी । थोड़ी देर में चाय-नाश्ता करने के बाद होटल के कमरे में जाकर अपना सारा इधर-उधर बिखरा सामान समेटा और बैगो में जल्दी से पैक किया । होटल के काउंटर पर जाकर अपने दो दिन का हिसाब बनवाया और बिल भुगतान (कुल रु०1725/- का बिल बना जिसमे हमारे दो दिन का कमरे का किराया और कुछ चाय-कोफ़ी-दूध का भी हिसाब था ) करने के बाद होटल चेक आउट कर दिया । होटल के वेटरो की साहयता से सारा सामान कार की डिक्की में रखवाया, उनको टिप के रूप में कुछ रूपये दिए । चलने की पूरी तैयारी होने और सभी लोगो के कार में बैठने के बाद सुबह के लगभग 10:00 बजे के आसपास हम लोगो ने मनाली को अलविदा किया और सुहाने और भीगे मौसम का आनन्द लेते हुए, चल दिए नए स्थान पार्वती घाटी में स्थित पवित्र स्थल मनिकरण की ओर ।

Kullu City Behind Vyas River (पहाड़ों के साये में कुल्लू शहर का खूबसूरत नजारा और दिखता गुरुद्वारा )

Sunday, June 17, 2012

मनाली (Solang Valley) →सोलांग घाटी की प्राकृतिक सुंदरता (एक सुहाना सफ़र मनाली का….4)

Written by Ritesh Gupta
नमस्कार दोस्तों ! पिछले लेख में हम लोगो ने मनाली के पास रोहतांग दर्रा (Rohtang Pass) की सैर की थी, जिसके बारे आपने मेरे पिछले लेख एक सुहाना सफ़र मनाली का….3 में पढ़ा ही होगा । आइये अब चलते हैं “सोलांग घाटी की यात्रा “ पर ।

समय चक्र का पहिया अपनी गति से चला जा रहा था और हम लोगो को पता ही नही चला की रोहतांग के खुशगवार माहौल में सैर करते हुए तीन घंटे कब बीत गए और रोहतांग से अब विदा लेने का समय हो गया था । हम लोगो का यहाँ से जाने का मन तो नहीं कर रहा था, पर समय के अनुसार चलने को विवश थे । चलते-चलते अंतिम बार रोहतांग की खूबसूरत वादियों का ध्यान से अवलोकन किया और लगभग दोपहर के 12:15 बजकर अपनी कार में बैठकर अपने अगले पड़ाव सोलांग घाटी के लिए चल दिए गए ।
Solang Valley , Manali (सोलंग घाटी  , मनाली )

Tuesday, May 29, 2012

रोहतांग पास ( Rohtang Pass )→ बर्फीली घाटी की रोमांचक यात्रा (एक सुहाना सफ़र मनाली का....3)

Written by Ritesh Gupta
नमस्कार दोस्तों ! पिछले दिन 23 जून को हम लोगो ने मनाली के आस पास के दर्शनीय स्थलों की सैर की थी, जिसके बारे आप मेरे पिछले लेख “एक सुहाना सफ़र मनाली का..2 ” में पढ़ा ही होगा । आइये अब चलते हैं ” रोहतांग दर्रे की रोमांचक यात्रा “ की सैर पर ।

पिछ्ली रात हम लोग तय करके सोये थे कि अगले दिन हम लोगो को सुबह जल्दी उठकर रोहतांग दर्रा और सोलांग वैली देखने जाना हैं और अपने कल के इस कार्यक्रम से हमने अपने कार चालक को भी अवगत करा दिया था । उससे इस सम्बन्ध बातचीत भी हुई और उसने बताया की रोहतांग जाने के लिए बहुत जल्दी सुबह लगभग छह बजे की आसपास निकलना पड़ेगा, जिससे वहाँ पहुंचने में देरी न हो और रास्ते के जाम-झाम से बचा जा सके । दिनांक 24 जून 2010 का ठंडी सुबह का दिन था और सुबह-सुबह ही हल्की बारिश हो चुकी थी । हम लोग पौने पांच बजे के आसपास नींद से उठ गए और फोन करके कार चालक को भी उठा दिया था । हम लोगो ने जल्दी-जल्दी सुबह के अपने नित्यक्रम निपटाए । हमारे कमरे की बाथरूम में गीजर के द्वारा गर्म पानी की सुविधा होने से हम लोग नहा-धोकर तैयार हो गए थे ।
View from Manali→Rohtang Road , Manali (जी करता हैं पंक्षी बनकर उड़ जाऊ दूर गगन में )

Saturday, May 5, 2012

मनाली→हिमाचल प्रदेश का खूबसूरत पर्वतीय नगर (एक सुहाना सफ़र मनाली का....2)

Written by Ritesh Gupta
नमस्कार दोस्तों ! आज चलते हैं मनाली की दर्शनीय स्थलों की सैर पर । हम लोगो ने कार से रात भर सफ़र करते हुए दिल्ली से मनाली तक की अपनी यात्रा पूरी कर ली थी और यह वृतान्त पिछले लेख में वर्णित किया जा चुका हैं । व्यास नदी के किनारे-किनारे कुल्लू से मनाली तक रास्ता बहुत ही खूबसूरत और सुन्दर नजारों से भरा पड़ा हुआ हैं । जब हम कुल्लू से मनाली की ओर चले थे, तब रास्ते में एक जगह चाय-नाश्ते के लिए व्यास नदी के किनारे एक ढाबा कम रेस्तरा पर रुके थे, यही पर हमने चाय और आलू के गरम-गरम पराठे का नाश्ता कर अपनी भूख को शांत कर लिया था । नाश्ते के बाद अपना सफ़र जारी रखते हुए हम लोग मनाली से लगभग डेढ़ किमी० पहले के ग्रीन टैक्स  बैरिअर (Green Tax Barrier) पर पहुँच गए थे, यहाँ से मनाली शहर के अंदर प्रवेश करने के लिए हमने शायद लगभग रू०300/- ग्रीन टैक्स  के रूप में चुकाए । टैक्स का भुगतान करने के बाद (23 जून 2010) सुबह के नौ बजे के आसपास हम लोग मनाली शहर के माल रोड नाम की जगह पर पहुँच गए । दिल्ली से मनाली पहुँचने में हमें लगभग 14 घंटे का समय लगा था ।
Manalsu River in the Club House, Manali..... Kullu (बड़ा ठंडा पानी हैं इस मनाल्सू नदी का, मनाली)

Thursday, April 5, 2012

Agra to Manali Via Noida/Delhi by Car (एक सुहाना सफ़र मनाली का....1)

Written By Ritesh Gupta

सभी घुमक्कड़ साथियों को मेरा नमस्कार ! आज मैं अपनी पिछ्ली श्रृंखला माँअम्बाजी, माउन्टआबू और उदयपुर के बाद एक और नए यात्रा लेख की नई कड़ी शुरू करने जा रहा हूँ । यह नई श्रृंखला हैं → भारत के उत्तर में स्थित हिमाचल प्रदेश के  मनाली, रोहतांग और मणिकरण के सफ़र की । यह यात्रा अपने परिवार सहित जून, 2010 में आगरा से दिल्ली तक बस से तथा दिल्ली से मनाली, रोहतांग और मणिकरण होते हुए और वापिस दिल्ली तक कार के माध्यम से की थी । अब हम चलते हैं,अपने मनाली की यात्रा वृतांत की ओर ।

गर्मी का मौसम था और जून का महीना चल रहा था, इस समय मैदानी इलाके में गर्मीया अपने पूरे चरम होती हैं । उस समय आगरा शहर का तापमान लगभग 40 से 44 के बीच झूल रहा था । दिन में तेज धूप की वजह सड़कों पर लगभग सन्नाटा ही पसरा रहता था और आकाश में किसी भी प्रकार बादलों का कोई भी आवागमन भी नहीं हो रहा था । इधर हमारी रोज की वही एक सी व्यस्त दिनचर्या से मन उब रहा था और ह्रदय में एक अजीब कुलबुलाहट उठ रही थी, कि सारे काम काज छोड़कर किसी ठन्डे जगह (पर्वतीय स्थल) में कुछ दिनों के लिए घूमने चला जाऊ । मन में ये बात आते ही, मैंने किसी पर्वतीय स्थल पर चलने का मन बनाया और नोयडा में रहने वाले अपने छोटे भाई को फोन किया और उसे अपने साथ चलने के लिए कहा, तो मेरी यह बात सुनकर  वह तुरंत चलने को तैयार हो गया । अब समस्या उठी कि “ कौन सी जगह जाया जाये ?”  क्योकि अधिकतर उत्तर भारत की मुख्य पहाड़ी स्थल (Hill Station) हमारे घूमे हुए थे,  अकेले  “कुल्लू - मनाली ” को छोड़कर । हम लोगो कि सहमति “कुल्लू - मनाली” चलने के लिए हो गयी । चूँकि  इस सफ़र की शुरुआत नोयडा से होनी थी तो इसके लिए मुझे सबसे पहले अपने परिवार सहित नोयडा पहुचना था, उससे से आगे की  यात्रा दिल्ली या नोयडा से शुरू करनी थी । हमारे जाने का स्थान पक्का हो जाने के बाद अब हमारे सामने एक सवाल था कि यहाँ से मनाली कैसे या किस प्रकार जाया जाये ? उसके लिए भी हमारे सामने जाने के कुछ निम्न तरीके/उपाय थे  ।

Tajmahal (click on for large pic)
Wah Taj ! अब हमने अपनी यात्रा आगरा से शुरू की हैं, तो भारत की शान आगरा के "ताजमहल " का एक फोटो तो होना चाहिये |

Sunday, February 26, 2012

Around Udaipur- हल्दीघाटी,श्री नाथद्वारा,एकलिंगजी (Haldighati,Nathdwara & Eklingji)_Part-4

पिछले लेख से आगे। संग्रहालय घूमते समय हम लोग चलचित्र (Light & Sound Show Hall)वाले हॉल में जा पहुचे और यहाँ पर हमारे बस के “फतेहसागर लेक” ग्रुप के सभी लोगो की इकट्ठा कर दिया गया था। हॉल में मेवाड़ और हल्दीघाटी का इतिहास, महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल आदि के बारे में चलचित्र (Light & Sound Show) के माध्यम से प्रदर्षित किया गया। इस चलचित्र के प्रदर्शन समय लगभग १० मिनिट का था और इस हॉल में बैठने के लिए लकड़ी के बेंच की व्यवस्था भी थी। हॉल से निकलने के बाद संग्रहालय के और कई कमरे हमने देखे, सभी कमरे मेवाड़ और राजस्थान की एतिहासिक वस्तुए से संगृहीत थे। संग्रहालय के कमरे के बाद एक खुले स्थान पर गुलाब के फूलो से गुलाबजल बनाने की विधि का प्रदर्शन हो रहा था, साथ में ही एक आयुर्वेद उत्पाद दुकान थी, जहाँ से हमने गुलाबजल और गुलुकंद ख़रीदा। इस संग्रहालय में छोटा किन्तु सुन्दर एक कृत्रिम सरोवर था और उसमे में गिरता हुआ एक पानी का झरना मन को और भी लुभा रहा था। सरोवर के किनारे और कुछ सरोवर के पानी में तरह-तरह की मूर्तिकला माध्यम से सुन्दर द्रश्य का प्रदर्शन किया गया था। इस छोटे से सरोवर में पैडलबोट (पैर की सहायता से चलने वाली नौकाए)की भी व्यवस्था थी। 

आप भी नीचे दिए कुछ और सुन्दर चित्रों के माध्यम से संग्रहालय का अवलोकन कर सकते हैं:

संग्रहालय के अन्दर एक सरोवर पर बना पुल और पीछे बहता झरना।

संग्रहालय के अन्दर सरोवर पर  कालिया नाग के ऊपर नाचते भगवान श्री कृष्ण का एक द्रश्य

Tuesday, February 14, 2012

UDAIPUR: घसियार(Old Tample Nathdwara), ऐतिहासिक भूमि-"हल्दीघाटी".Part-3


UDAIPUR, दिनांक ३० जून २०११ और दिन गुरुवार था और ये हमारे सफ़र का चौथा और अंतिम दिन था। आज हमें जहाँ घूमने जाना हैं, उसका कार्यक्रम हम कल ही बना चुके थे और एक बस में टिकिट भी आरक्षित भी करवा दी थी। लगभग सुबह ६ बजे के आसपास हम लोग नींद से उठ गए और कुछ समय पश्चात, अपने सुबह के जरुरी काम निपटाकर घूमने जाने के लिए तैयार हो गए। कमरे की खिड़की से उदय पोल, केंद्रीय बस अड्डा और पीछे जाती हुई रेलवे लाइन का सुन्दर नज़ारा दिख आ रहा था।
उदय पोल, केंद्रीय बस अड्डा और पीछे जाती हुई रेलवे लाइन का सुन्दर नज़ारा।
अपने आगे के सफ़र पर जाने से पहले हमने अपना सारा सामान इकठ्ठा किया और अपने बैगो में पैक कर दिया, क्योकि हमने इस होटल में कमरा एक दिन के लिए ही किराये पर लिया था और अब हमें इसे सुबह १० बजे से पहले खाली भी करना था।

रात को उदयपुर में हमारा रुकने का कोई कार्यक्रम नहीं था, क्योकि आज रात को हमें आगरा के लिए वापिस जाना था और हमारा उदयपुर-ग्वालियर सुपरफास्ट एक्सप्रेस रेल (रेलगाड़ी संख्या १२९६६ और उदयपुर से गाड़ी चलने का समय रात १० बजकर २० मिनिट पर) से टिकिटो का अग्रिम आरक्षण भी था।

होटल की छत से दीखता सिटी पैलेस ।

Wednesday, January 18, 2012

Tour of the Udaipur City (फ़तेहसागर झील,नेहरू पार्क ,सहेलियों की बाड़ी,सुखाडिया सर्किल)--Part-2

नमस्कार  दोस्तों !
शाम के लगभग साढ़े पांच बज रहे थे, और इस समय हम लोग अरावली वाटिका में ही थे अरावली वाटिका कुछ समय बिताने या मनोरंजन करने की अच्छी जगह हैं, क्योकि जब तक हम यहाँ पर थे, बहुत ही कम लोग ही यहाँ पर इसे देखने पहुचे हुए थे, और इस कारण कोई हल्ला-गुल्ला या फिर अधिक शोरगुल नहीं था, वाटिका के सड़क किनारे होने के कारण थोड़ी-बहुत सड़क पर चलने वाले वाहनों के आने जाने की आवाज आ रही थी।    
 
अरावली वाटिका में स्लेटी पत्थर के टुकडो से बना हाथी
अरावली वाटिका एक पुल और पुल के नीचे भी एक पार्क हैं
कुछ समय अरावली वाटिका की हरियाली और शांत माहौल में बिताने के बाद हम लोग ऑटोरिक्शा से फ़तेहसागर झील की ओर चल दिए लगभग १५  मिनिट में हम लोग फ़तेह सागर झील के पास मोती मगरी नाम के स्थान पर पहुच जाते हैं।  

"महाराणा प्रताप स्मारक" मोती मगरी (Pearl Hill ) पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ एक स्मारक उद्यान हैं,अब  यहाँ पर महाराणा प्रताप की उनके वफादार घोड़े "चेतक" पर बैठे हुए कांसे की एक बड़ी मूर्ति लगी हुई हैं,और चारो ओर हरा भरा व सुन्दर उद्यान (ROCK  GARDEN ) विकसित हैंपहले इस पहाड़ी की चोटी मोती महल हुआ करता था, अब उसके अवशेष (खंडर) स्मारक पास में ही स्थित हैं  
फ़तेह सागर झील किनारे सड़क से दिखता "महाराणा प्रताप स्मारक", मोती मगरी (Pearl Hill )
हम लोगो को "महाराणा प्रताप स्मारक" सड़क से ही नज़र आ रहा था, पर "महाराणा प्रताप स्मारक" को देखने के लिए हम लोग जा नहीं गए सोचा की अगले बार जायेंगे और झील किनारे सड़क से ही उस सुन्दर स्मारक की एक सुन्दर सी फोटो अपने कैमरे में कैद कर ली

उदयपुर में पिछोला झील के बाद फ़तेहसागर झील उदयपुर की दूसरी बड़ी और प्रसिद्ध झील हैं, जो की पिछोला झील के उत्तर में और मोती मगरी नाम की पहाड़ी के प्रवेश द्वार के पास स्थित हैं। यह झील सवा दो किलोमीटर लम्बी और सवा किलोमीटर चौड़ी हैं फ़तेहसागर झील का पानी नीला हैं और इसके पानी को एक बांध बनाकर रोका गया हैं, बरसातो में झील में पानी अधिक हो जाने पर इसी बांध के जरिये अधिक पानी बहार निकाल दिया जाता हैं फ़तेहसागर झील में में तीन द्वीप हैं- सबसे बड़े द्वीप पर नेहरु पार्क हैं, जो सुंदर उद्यान, चिड़ियाघर और एक रेस्तरां (जो की पुल के जरिये नेहरु पार्क से जुड़ा हुआ हैं) के लिए जाना जाता हैं । इस नेहरु पार्क तक जाने के लिए मोती मगरी के पास से उदयपुर सरकार द्वारा संचालित नाव, पानी के स्कूटर, मोटर बोट आदि की व्यवस्था हैं, दूसरे द्वीप पर एक उदयपुर की सरकार के द्वारा लगाया गया जेट फव्वारा हैं और तीसरे द्वीप पर उदयपुर सौर वेधशाला (Udaipur Solar Observatory) हैं।   
 
फ़तेह सागर झील का द्रश्य बड़ा ही मनोरम और शाम की लालिमा लिए हुए था  पानी से झील लबालब भरी हुई थी और तेज हवा चलने के कारण झील का पानी काफी हलचल थी  झील का पानी गहरा नीला था, और साथ में ही दूर कुछ छोटी-छोटी पहाड़िया भी नज़र आ रही थी। 
 
झील से दिखता मोती मगरी घाट और मोटर बोट झील के बीच में बने द्वीप पर उदयपुर सौर वेधशाला भी नज़र रहा हैं
झील के बीच में द्वीप पर बना नेहरु पार्क किनारे से बड़ा ही आकर्षक नज़र आ रहा था, इसलिए वहा पर जाने के इच्छा भी करने लगी थी, सो नेहरु पार्क तक की यात्रा  के लिए मोती मगरी घाट पर स्थित सरकारी बोट स्टैंड से टिकिट ख़रीदे, एक टिकिट, मोटरबोट से नेहरू पार्क तक जाने का और वहा से वापिस आने तक मान्य थी, लौटने के समय का कोई बंधन नहीं थाटिकिट लेने के पश्चात् हम लोग अपनी बारी का इन्तजार करने लगे कुछ देर में ही मोटर बोट आ गयी, हम सभी लोग बारी-बारी से उसमे सवार हो गए, यहाँ के मोटर बोट के नियम के अनुसार बोट में पहले से रखी गयी, लाइफ जेकेट पहनना बहुत जरुरी था सवारियों से भर जाने के बाद मोटर बोट नेहरू पार्क के लिए रवाना हो गयी, कुछ ही देर की यात्रा के बाद हम लोक नेहरु पार्क के घाट पर पहुच जाते हैं मोटर बोट से झील में यात्रा करने का आनंद कुछ अलग ही था। अन्दर से नेहरू पार्क में पेड़ पौधे, फब्बारा, पानी का एक छोटा सा तालाब, छोटे-छोटे घास के पार्क, टहलने के लिए पगडण्डी, क्यारियो में लगे सुन्दर फूल आदि सब कुछ व्यवस्थित तरीके से बना हुआ था।  नीचे दिए गए चित्रों के माध्यम से आप लोग भी नेहरू पार्क और नेहरु पार्क से दिखने वाले द्रश्य का अवलोकन कर सकते हो 

नेहरु पार्क के अन्दर से काफी अच्छी तरह व्यवस्थित और सुन्दर  हैं यहाँ पर फब्बारे संचालित होते हैं, किन्तु  हमें ऐसा नहीं ला
नेहरु पार्क के अन्दर पुल से जुड़ा नेहरू पार्क केफेटेरिया ( रेस्तरा ), जहा हम लोगो ने कोंफी और चाय का लुफ्त उठाया था  
नेहरु पार्क से दिखता फतेहसागर झील का विहंगम और मनोरम सूर्यास्त का सुन्दर  द्रश्य
नेहरु पार्क से दिखता  झील का एक विहगम द्रश्य । सामने दूसरे द्वीप पर संचालित जेट फब्बारा भी नज़र आ रहा हैं
मोती मगरी के पास झील के किनारे बना घाट, यही से बोट नेहरु पार्क तक जाती हैं। सामने डूबता हुआ सूर्य भी दिखाई दे रहा हैं
नेहरू पार्क में टहलते हुए हम लोगो अब काफी समय व्यतीत हो गया था। संध्या भी हो चली थी, सामने झील में मनोरम सूर्यास्त भी नज़र आ रहा था शाम के लगभग सात बजने वाले थे वापिस जाने के लिए करीब दस मिनिट मोटर बोट का इंतजार करना पड़ा वापिस आने पर हमारे ऑटो रिक्शा वाले घाट के पास ही सड़क के किनारे खड़े मिल गए अब हम लोगो को सहेलियों की बाड़ी पहुचना था लगभग सवा सात के आसपास हम लोग सहेलियों की बाड़ी पहुच गए 
 
सहेलियों की बाड़ी भी उदयपुर के प्रसिद्ध स्थानों में से एक हैं यह एक शाही वाटिका हैं, जो राजपरिवार की महिलाओ के मनोरंजन एवं उनके आराम के लिए बनवाई गयी एक शानदार वाटिका हैं। यह वाटिका इस ढंग से बनवाई गयी हैं की गर्मियों में यहाँ के वातावरण में भी शीतलता बनी रहती हैंशीतलता बनी रहनी का मुख्य  कारण यहाँ पर सुन्दर बगीचों के बीच में बनी छत्रियो के किनारे पानी के फब्बारे लगे हुए हैंपानी के फब्बारे के चलते रहने के कारण यहाँ का माहौल बारिश के मौसम के जैसा हो जाता हैं, और यहाँ की हवा पानी की फुहारों से नम होकर शीतलता का आभास कराती हैंफब्बारे वाला मुख्य स्थान चारो ओर से ऊची दीवार से घिरा हुआ हैं ओर अन्दर जाने के लिए एक दरवाज़ा बना हुआ हैं, कई जगह संगमरमर की पशु-पक्षियों की मूर्तियां भी बनी हैं। यहाँ पहुच कर हम लोगो ने भी वैसे अनुभव किया क्योकि उस समय यहाँ पर फब्बारे चल रहे थे और बगीचा भी खूब सुन्दर था।  
सहेलियों की बाड़ी और उसमे संचालित पानी के  फब्बारे
सहेलियों की बाड़ी घूमने के बाद हम लोग सुखाडिया गोल चक्कर (Sukhadiya Circle) पहुँच गए जो सहेलियों की बाड़ी के सामने से गए हुए रास्ते से कुछ दूरी पर था 

सुखाडिया गोल चक्कर चौराहा के बीच में बना एक बड़ा गोल चक्कर हैं, जिसके बीच में एक छोटा सा सरोवर, सरोवर के बीच में एक फब्बारा और उस सरोवर के किनारे सुन्दर सा बगीचा और घास के पार्क बने हुए हैं। अन्दर प्रवेश करने के लिए चारो और से प्रवेश द्वार भी हैं।
 
सुखाडिया गोल चक्कर में सुन्दर फब्बारा और सरोवर में चलती तरह तरह की पैदल बोट
जब हम पहुचे तो सुखाडिया गोल चक्कर में काफी भीड़-भाड़ थी। पार्क में लोग अपने हिसाब से मनोरंजन कर रहे थेसुखाडिया गोल चक्कर में स्थित सरोवर में पैदल बोट चलाने की व्यवस्था थी और पार्क कठपुतली का आयोजन हो रहा था। रौशनी की भरपूर व्यवस्था थी और शाम के अँधेरे में सुखाडिया सर्किल बहुत अच्छा लग रहा था सुखाडिया सर्किल घूमने और थोड़ी देर पार्क में आराम करने के बाद हम लोग ऑटोरिक्शा से वहा से चल दिए कुछ देर चलने के बाद ऑटो रिक्शा ने हमें एक बड़ी से दुकान (राजस्थानी सामान की दुकान) के सामने ले जाकर उतार दिया, हमने पूछा तो उसने बताया की "यह एम्पोरियम घूमने के सबसे अंतिम स्थान में आता हैं, आप लोग यहाँ घूमिये जो पसंद आये उसे खरीद लीजिये" थोड़ी देर हम लोगो ने दुकान में घूमे, कुछ सामान को देखा, उनकी  कीमत पूछी तो वो सामान काफी  महंगा था, पर हमने वहा से कुछ नहीं  ख़रीदा और वापिस ऑटो में आकर बैठ गए और ऑटो वाले से कहाँ "हमें कुछ नहीं खरीदना, समय भी अब काफी हो चुका, एक काम करो आप अब हमें हमारे होटल पर छोड़ दो।" मैंने मन में सोचा कि हो सकता हैं, ऑटो वाले का इस दुकानदार से कुछ दलाली तय हो तभी तो वो हमको वहां पर लाया था

कुछ देर में ही हम लोग होटल पहुच गए वहां पहुच कर हमने ऑटो वाले का हिसाब किया और होटल कमरे में पहुच गए। आज का पूरा दिन हमारा थकावट वाला रहा, क्योकि सुबह माउन्ट आबू से उदयपुर का लम्बा सफ़र बस से तय किया और उसके बाद ऑटो उदयपुर के दर्शनीय स्थलों का अवलोकन किया। थके होने के कारण खाना भी हमने अपने कमरे में ही माँगा लिया था। खाना खाकर हमने कल के लिए योजना बनाई, क्योकि हम पर अभी कल का एक दिन और बाकि था, कुछ स्थान जैसे मानसून पैलेस, उदय सागर, सिटी पैलेस, 

जगनिवास इत्यादि को छोड़कर अधिकतर उदयपुर शहर हमने घूम लिया था, जब हम माउन्ट आबू से चले थे तभी से हमारी इच्छा भगवान श्रीनाथ जी (नाथद्वारा) के दर्शन करने व हल्दीघाटी को देखने की थी, सो अगले दिन का कार्यक्रम हमने नाथद्वारा और हल्दीघाटी जाने का बनाया। हमने नीचे होटल के काउंटर पर जाकर होटल के मैनेज़र को अपना कल का कार्यक्रम बताया तो उसने एक टूरिस्ट बस में कल के लिए सीटे आरक्षित करवा दी। एक टिकिट का मूल्य १४० रूपये था और बस का समय सुबह ८ बजे का था। 

अब इस लेख को अब यही समाप्त करते हैं, और मिलते हैं अगले लेख में उदयपुर के आसपास के कुछ नए स्थानों के साथ। धन्यवाद !


Tuesday, January 3, 2012

Udaipur:A Beautiful Travel Destination, झीलों की नगरी : उदयपुर ........Part...1

नमस्कार दोस्तों !

तारीख २९ जून २०११ दिन बुधवार था मैंने अपने पिछले धारावाहिक लेख "माउन्ट आबू" में लिखा था की कैसे हमने अपने दो दिन माँ अम्बाजी, माउन्ट आबू और उसके आस पास के दर्शनीय स्थल की सैर करने में बिताये थे और दो दिन पता ही नहीं चले की कब ख़त्म हो गएआज हमारे सफ़र का तीसरा दिन था, और तय कार्यक्रम के अनुसार आज हम लोगो को आज माउन्ट आबू से उदयपुर का सफ़र तय करना था   

हम लोग सुबह ६ बजे ही उठ गए, आज की सुबह भी पिछली सुबह की तरह ठंडी थी । खिड़की से बाहर झाँका तो देखा की पूरा शहर सुनसान था, कोई भी चहल कदमी नहीं थी । हम लोग जल्दी - जल्दी उठकर तैयार हुए, चाय - नाश्ता किया, सारा सामान समेटा और गेस्ट हाउस वाले का हिसाब किया   ८ बजे के आसपास हम लोग गेस्ट हाउस के बाहर बस स्टैंड जाने के लिए नीचे सड़क पर आ गए और बस स्टैंड तक सामान ले जाने के लिए हाथ से धकलने वाली गाड़ी वाले से ४० रुपये किराये पर गाड़ी तय की और हम लोग ने आपना सारा सामान गाड़ी में लगाया और बच्चो को भी उसमे बैठा दिया और बाकी लोग बस स्टैंड तक पैदल ही चल दिए। १० मिनिट में हम लोग बस स्टैंड पंहुच गएरिम झिम - रिम झिम हलकी फुलकी बारिश भी शुरू हो गयी और ठंडी हवा भी चल रही थी, जिससे ठण्ड और भी बढ़ गयी। 

उदयपुर जाने वाली बस, स्टैंड पर पहले से खड़ी हुई थी, बस में हम लोगो ने अपना सामान लगाया और पहले से आरक्षित की हुई सीटो पर बैठ गए कुछ समय (लगभग ९:१०) बाद बस बस चल दी । रास्ते में बस वाले ने कई होटलों और गेस्ट हाउस से अपनी बुक की गई सवारियों बस में बैठाया जिसके कारण बस को अपने गंतव्य स्थान को चलने में थोड़ी देर हुई

माउन्ट आबू से उदयपुर की दूरी लगभग 185 किलोमीटर हैं । उदयपुर जाने का रास्ता आबू रोड से होकर जाता हैं, आबू रोड से उदयपुर एक चार लाइन के राष्ट्रीय राजमार्ग १४ पिडवारा तक और पिडवारा से राष्ट्रीय राजमार्ग ७६  (National Highway 76) से सीधा जुड़ा हुआ हैं । यह दूरी बस के द्वारा तय करने में लगभग ३.५ से ४ घंटे का समय लगता हैं

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