नमस्कार दोस्तों !
शाम के लगभग साढ़े पांच बज रहे थे, और इस समय हम लोग अरावली वाटिका में ही थे। अरावली वाटिका कुछ समय बिताने या मनोरंजन करने की अच्छी जगह हैं, क्योकि जब तक हम यहाँ पर थे, बहुत ही कम लोग ही यहाँ पर इसे देखने पहुचे हुए थे, और इस कारण कोई हल्ला-गुल्ला या फिर अधिक शोरगुल नहीं था, वाटिका के सड़क किनारे होने के कारण थोड़ी-बहुत सड़क पर चलने वाले वाहनों के आने जाने की आवाज आ रही थी।
अरावली वाटिका में स्लेटी पत्थर के टुकडो से बना हाथी
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अरावली वाटिका एक पुल और पुल के नीचे भी एक पार्क हैं
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"महाराणा प्रताप स्मारक" मोती मगरी (Pearl Hill ) पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ एक स्मारक उद्यान हैं,अब यहाँ पर महाराणा प्रताप की उनके वफादार घोड़े "चेतक" पर बैठे हुए कांसे की एक बड़ी मूर्ति लगी हुई हैं,और चारो ओर हरा भरा व सुन्दर उद्यान (ROCK GARDEN ) विकसित हैं।पहले इस पहाड़ी की चोटी मोती महल हुआ करता था, अब उसके अवशेष (खंडर) स्मारक पास में ही स्थित हैं ।
फ़तेह सागर झील किनारे सड़क से दिखता "महाराणा प्रताप स्मारक", मोती मगरी (Pearl Hill )
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उदयपुर में पिछोला झील के बाद फ़तेहसागर झील उदयपुर की दूसरी बड़ी और प्रसिद्ध झील हैं, जो की पिछोला झील के उत्तर में और मोती मगरी नाम की पहाड़ी के प्रवेश द्वार के पास स्थित हैं। यह झील सवा दो किलोमीटर लम्बी और सवा किलोमीटर चौड़ी हैं ।फ़तेहसागर झील का पानी नीला हैं और इसके पानी को एक बांध बनाकर रोका गया हैं, बरसातो में झील में पानी अधिक हो जाने पर इसी बांध के जरिये अधिक पानी बहार निकाल दिया जाता हैं। फ़तेहसागर झील में में तीन द्वीप हैं- सबसे बड़े द्वीप पर नेहरु पार्क हैं, जो सुंदर उद्यान, चिड़ियाघर और एक रेस्तरां (जो की पुल के जरिये नेहरु पार्क से जुड़ा हुआ हैं) के लिए जाना जाता हैं । इस नेहरु पार्क तक जाने के लिए मोती मगरी के पास से उदयपुर सरकार द्वारा संचालित नाव, पानी के स्कूटर, मोटर बोट आदि की व्यवस्था हैं, दूसरे द्वीप पर एक उदयपुर की सरकार के द्वारा लगाया गया जेट फव्वारा हैं और तीसरे द्वीप पर उदयपुर सौर वेधशाला (Udaipur Solar Observatory) हैं।
झील से दिखता मोती मगरी घाट और मोटर बोट । झील के बीच में बने द्वीप पर उदयपुर सौर वेधशाला भी नज़र रहा हैं ।
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झील के बीच में द्वीप पर बना नेहरु पार्क किनारे से बड़ा ही आकर्षक नज़र आ रहा था, इसलिए वहा पर जाने के इच्छा भी करने लगी थी, सो नेहरु पार्क तक की यात्रा के लिए मोती मगरी घाट पर स्थित सरकारी बोट स्टैंड से टिकिट ख़रीदे, एक टिकिट, मोटरबोट से नेहरू पार्क तक जाने का और वहा से वापिस आने तक मान्य थी, लौटने के समय का कोई बंधन नहीं था। टिकिट लेने के पश्चात् हम लोग अपनी बारी का इन्तजार करने लगे कुछ देर में ही मोटर बोट आ गयी, हम सभी लोग बारी-बारी से उसमे सवार हो गए, यहाँ के मोटर बोट के नियम के अनुसार बोट में पहले से रखी गयी, लाइफ जेकेट पहनना बहुत जरुरी था। सवारियों से भर जाने के बाद मोटर बोट नेहरू पार्क के लिए रवाना हो गयी, कुछ ही देर की यात्रा के बाद हम लोक नेहरु पार्क के घाट पर पहुच जाते हैं। मोटर बोट से झील में यात्रा करने का आनंद कुछ अलग ही था। अन्दर से नेहरू पार्क में पेड़ पौधे, फब्बारा, पानी का एक छोटा सा तालाब, छोटे-छोटे घास के पार्क, टहलने के लिए पगडण्डी, क्यारियो में लगे सुन्दर फूल आदि सब कुछ व्यवस्थित तरीके से बना हुआ था। नीचे दिए गए चित्रों के माध्यम से आप लोग भी नेहरू पार्क और नेहरु पार्क से दिखने वाले द्रश्य का अवलोकन कर सकते हो।
नेहरु पार्क के अन्दर से काफी अच्छी तरह व्यवस्थित और सुन्दर हैं । यहाँ पर फब्बारे संचालित होते हैं, किन्तु हमें ऐसा नहीं ला ।
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नेहरु पार्क के अन्दर पुल से जुड़ा नेहरू पार्क केफेटेरिया ( रेस्तरा ), जहा हम लोगो ने कोंफी और चाय का लुफ्त उठाया था ।
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नेहरु पार्क से दिखता झील का एक विहगम द्रश्य । सामने दूसरे द्वीप पर संचालित जेट फब्बारा भी नज़र आ रहा हैं।
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मोती मगरी के पास झील के किनारे बना घाट, यही से बोट नेहरु पार्क तक जाती हैं। सामने डूबता हुआ सूर्य भी दिखाई दे रहा हैं ।
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नेहरू पार्क में टहलते हुए हम लोगो अब काफी समय व्यतीत हो गया था। संध्या भी हो चली थी, सामने झील में मनोरम सूर्यास्त भी नज़र आ रहा था। शाम के लगभग सात बजने वाले थे। वापिस जाने के लिए करीब दस मिनिट मोटर बोट का इंतजार करना पड़ा। वापिस आने पर हमारे ऑटो रिक्शा वाले घाट के पास ही सड़क के किनारे खड़े मिल गए। अब हम लोगो को सहेलियों की बाड़ी पहुचना था। लगभग सवा सात के आसपास हम लोग सहेलियों की बाड़ी पहुच गए।
सहेलियों की बाड़ी भी उदयपुर के प्रसिद्ध स्थानों में से एक हैं। यह एक शाही वाटिका हैं, जो राजपरिवार की महिलाओ के मनोरंजन एवं उनके आराम के लिए बनवाई गयी एक शानदार वाटिका हैं। यह वाटिका इस ढंग से बनवाई गयी हैं की गर्मियों में यहाँ के वातावरण में भी शीतलता बनी रहती हैं।शीतलता बनी रहनी का मुख्य कारण यहाँ पर सुन्दर बगीचों के बीच में बनी छत्रियो के किनारे पानी के फब्बारे लगे हुए हैंपानी के फब्बारे के चलते रहने के कारण यहाँ का माहौल बारिश के मौसम के जैसा हो जाता हैं, और यहाँ की हवा पानी की फुहारों से नम होकर शीतलता का आभास कराती हैं।फब्बारे वाला मुख्य स्थान चारो ओर से ऊची दीवार से घिरा हुआ हैं ओर अन्दर जाने के लिए एक दरवाज़ा बना हुआ हैं, कई जगह संगमरमर की पशु-पक्षियों की मूर्तियां भी बनी हैं। यहाँ पहुच कर हम लोगो ने भी वैसे अनुभव किया क्योकि उस समय यहाँ पर फब्बारे चल रहे थे और बगीचा भी खूब सुन्दर था।
सहेलियों की बाड़ी और उसमे संचालित पानी के फब्बारे ।
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सहेलियों की बाड़ी घूमने के बाद हम लोग सुखाडिया गोल चक्कर (Sukhadiya Circle) पहुँच गए जो सहेलियों की बाड़ी के सामने से गए हुए रास्ते से कुछ दूरी पर था।
सुखाडिया गोल चक्कर चौराहा के बीच में बना एक बड़ा गोल चक्कर हैं, जिसके बीच में एक छोटा सा सरोवर, सरोवर के बीच में एक फब्बारा और उस सरोवर के किनारे सुन्दर सा बगीचा और घास के पार्क बने हुए हैं। अन्दर प्रवेश करने के लिए चारो और से प्रवेश द्वार भी हैं।
सुखाडिया गोल चक्कर में सुन्दर फब्बारा और सरोवर में चलती तरह तरह की पैदल बोट ।
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जब हम पहुचे तो सुखाडिया गोल चक्कर में काफी भीड़-भाड़ थी। पार्क में लोग अपने हिसाब से मनोरंजन कर रहे थे। सुखाडिया गोल चक्कर में स्थित सरोवर में पैदल बोट चलाने की व्यवस्था थी और पार्क कठपुतली का आयोजन हो रहा था। रौशनी की भरपूर व्यवस्था थी और शाम के अँधेरे में सुखाडिया सर्किल बहुत अच्छा लग रहा था। सुखाडिया सर्किल घूमने और थोड़ी देर पार्क में आराम करने के बाद हम लोग ऑटोरिक्शा से वहा से चल दिए। कुछ देर चलने के बाद ऑटो रिक्शा ने हमें एक बड़ी से दुकान (राजस्थानी सामान की दुकान) के सामने ले जाकर उतार दिया, हमने पूछा तो उसने बताया की "यह एम्पोरियम घूमने के सबसे अंतिम स्थान में आता हैं, आप लोग यहाँ घूमिये जो पसंद आये उसे खरीद लीजिये"। थोड़ी देर हम लोगो ने दुकान में घूमे, कुछ सामान को देखा, उनकी कीमत पूछी तो वो सामान काफी महंगा था, पर हमने वहा से कुछ नहीं ख़रीदा और वापिस ऑटो में आकर बैठ गए और ऑटो वाले से कहाँ "हमें कुछ नहीं खरीदना, समय भी अब काफी हो चुका, एक काम करो आप अब हमें हमारे होटल पर छोड़ दो।" मैंने मन में सोचा कि हो सकता हैं, ऑटो वाले का इस दुकानदार से कुछ दलाली तय हो तभी तो वो हमको वहां पर लाया था।
कुछ देर में ही हम लोग होटल पहुच गए। वहां पहुच कर हमने ऑटो वाले का हिसाब किया और होटल कमरे में पहुच गए। आज का पूरा दिन हमारा थकावट वाला रहा, क्योकि सुबह माउन्ट आबू से उदयपुर का लम्बा सफ़र बस से तय किया और उसके बाद ऑटो उदयपुर के दर्शनीय स्थलों का अवलोकन किया। थके होने के कारण खाना भी हमने अपने कमरे में ही माँगा लिया था। खाना खाकर हमने कल के लिए योजना बनाई, क्योकि हम पर अभी कल का एक दिन और बाकि था, कुछ स्थान जैसे मानसून पैलेस, उदय सागर, सिटी पैलेस,
जगनिवास इत्यादि को छोड़कर अधिकतर उदयपुर शहर हमने घूम लिया था, जब हम माउन्ट आबू से चले थे तभी से हमारी इच्छा भगवान श्रीनाथ जी (नाथद्वारा) के दर्शन करने व हल्दीघाटी को देखने की थी, सो अगले दिन का कार्यक्रम हमने नाथद्वारा और हल्दीघाटी जाने का बनाया। हमने नीचे होटल के काउंटर पर जाकर होटल के मैनेज़र को अपना कल का कार्यक्रम बताया तो उसने एक टूरिस्ट बस में कल के लिए सीटे आरक्षित करवा दी। एक टिकिट का मूल्य १४० रूपये था और बस का समय सुबह ८ बजे का था।
अब इस लेख को अब यही समाप्त करते हैं, और मिलते हैं अगले लेख में उदयपुर के आसपास के कुछ नए स्थानों के साथ। धन्यवाद !
Hello Sir/Mam wanna to discus with you for blog posting my content if you are interested so please contact me in my mail saras.seospecializer@gmail.com .
ReplyDeleteIf you are interested so please contact me in my email address.
Thanks Regard
Saras Srivastava
मित्रवर रितेश जी उदयपुर की ख़ूबसूरती को शब्दों में बयान करना एकदम मुश्किल है , आपकी तसवीरें इसकी असली ख़ूबसूरती बयान कर रही हैं ! मोती मगरी और फ़तेह सागर झील की और तसवीरें होनी चाहिए थीं ! आपने शायद सन 2011 में ये यात्रा की है ? मुझे अभी इसी साल जनवरी में वहां जाने के अवसर मिला था और उम्मीद करता हूँ हल्दीघाटी तक का सफर रहा होगा आपका ? शानदार लेख और बहुत खूबसूरत तस्वीरों के लिए बधाई !!
ReplyDeleteश्रीमान योगी सारस्वत जी ...
Deleteपोस्ट पर आने और टिप्पणी करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद | उदयपुर वास्तव में एक खूबसूरत शहर है ...| मोतीमगरी हम लोग नही गये थे इसलिए फोटो नहीं है ... जी हां ये यात्रा सन २०११ में की थी |हां जी हल्दी घाटी भी गये थे जिसकी पोस्ट भी लिखी जा चुकी है |
धन्यवाद