नमस्कार दोस्तों ! पिछले तीन भाग से आगे । लगभग दोपहर हो चुकी थी और अब भूख भी हमें सताने लगी थी, एक अच्छा से रेस्टोरेंट तलाश किया जो शांति पार्क के पास में ही था और राजस्थान के मुख्य व्यंजन " दाल बाटी " और " चूरमा " का का लुफ्त उठाया । एक बात तो हैं की राजस्थान के माउन्ट आबू के आस पास लगभग सभी जगह खाना स्वादिस्ट और स्वछता से परिपूर्ण था । भोजन करने के बाद हम लोग अपने अगले पड़ाव - अचलगढ़ शिव मंदिर पहुच गए ।
अचलगढ़ शिव मंदिर
अचलगढ़ शिव मंदिर माउन्ट आबू से लगभग ११ किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में हैं और पास मे ही अचलगढ़ जैन मंदिर भी कुछ कदम की दूरी पर हैं। अचलगढ़ के आस पास काफी प्राचीन मूर्तिया बनी हुयी हैं ।
अचलगढ़ शिव मंदिर एक बहुत ही सुन्दर और प्राचीन मंदिर हैं । मंदिर परिसर में शिवाजी के मंदिर के आगे की नंदी जी की बड़ी मूर्ति हैं जो पीतल से बनी हुयी हैं । हम लोग जब मुख्य शिवाजी के मंदिर में प्रवेश किया तो वहा बहुत अँधेरा था और मंदिर जमीन से २ फुट लगभग नीचे था, कुछ जलते हुए दीये मंदिर के अन्दर के अँधेरे को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे । वैसे आम तौर पर शिव लिंग उपरी भाग उठा हुआ होता हैं पर यहाँ सकी की जगह एक गहरा गड्डा बना हुआ था और पास में ही स्फटिक पत्थर (एक प्रकार का पारदर्शी पत्थर ) की दो प्राचीन मूर्तिया भी थी । वहां के पुजारी ने बताया की यह शिव लिंग प्राकर्तिक रूप से ऐसा ही हैं, और यहाँ शिव लिंग के गड्डे अन्दर भगवान् शिवजी के पैर के अगुठे का आकार निशान बना हुआ हैं और इसी अगुठे ने पूरे माउन्ट आबू के पहाड़ को थाम रखा हैं जिस दिन यह अगुठे के निशान गायब हो जायेगा यह माउन्ट आबू पहाड़ ख़त्म हो जायेगा । हम लोगो ने भगवान् भोले नाथ के शिव लिंग के दर्शन किये और कुछ देर मंदिर के आस पास बिताने के बाद हम लोग अपने अगले पड़ाव दिलवाड़ा जैन मंदिर की और चल दिये ।
दिलवाड़ा जैन मंदिर
दिलवाड़ा जैन मंदिर शहर से लगभग ४ किलोमीटर दूर स्थित हैं । यह जैन मंदिरों में से सबसे सुन्दर मंदिर हैं । मंदिर के खुलने का समय दोपहर १२:०० बजे से शाम ५:०० बजे तक हैं । मंदिर में प्रवेश करने से पहले हम लोगो ने अपना मोबाइल, कैमरा क्लोक रूम जमा कर दिया क्योकि यहाँ भी मोबाइल व कैमरे के साथ प्रवेश वर्जित था और जूते-चप्पल भी वही उतार दिए। यहाँ गेट पर २० से २५ लोगो का समूह में इकठ्ठा करके और मंदिर के एक गाईड के साथ मंदिर के अन्दर प्रवेश कराया जाता हैं ।
दिलवाड़ा मंदिर कारीगरों की मेहनत, लगन, कुशलता व दिल से बनाया गया एक बेमिशाल व् बेजोड़ कलाकृति से सुज्जजित मंदिर हैं जो की अपने आप में एक अजूबा हैं । दिलवाड़ा जैन मंदिर परिसर मे पांच जैन मंदिर समूह मे बने हुए हैं। मंदिर परिसर साफ़ सुधरा और शांति से परिपूर्ण था । बहुत ही आकर्षक ढ़ग से तराशे गए मंदिरों का निर्माण लगभग 11 वीं और 13 वीं सदी में हुआ था। मंदिर परिसर मे प्रथम जैन तीर्थकर का विमल विसाही मंदिर सबसे प्राचीनतम है। इसका निर्माण सन् 1031 में विमल विसाही नामक एक व्यापारी ने किया था, जो उस समय के गुजरात के शासकों का प्रतिनिधि था। यह मंदिर संगमरमर वास्तुकला के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। हर मंदिर मे संगमरमर से उकेरी गयी कलाक्रतिया अपने आप मे आदित्य, अद्भुत व् एक दूसरे से भिन्न हैं ।
प्रमुख मंदिर में ऋषभदेव की मूर्ति व ५२ छोटे मंदिरों वाला लम्बा गलियारा है, जिसमें प्रत्येक में तीर्थकरों की सुंदर प्रतिमाएँ स्थापित है तथा ४८ ललित्यपूर्ण ढ़ग से तराशे हुए खंभे गलियारे का प्रवेश द्वार बनाते हैं। देवरानी जेठानी का मंदिर और बाइसवें तीर्थंकर - नेमीनाथ का लून वसाही मंदिर का निर्माण दो भाइयों वस्तुपाल व तेजपाल ने ईसवी सन् १२३१ में किया वे पोरवाल जैन समुदाय से संबंध रखने वाले गुजरात के शासक राजा वीर धवल के मंत्री थे। संगमरमर पत्थर पर सुन्दर व् बारीक़ पच्चीकारी से बने और सामानांतर लगे खंभों, मूर्तियों, कई तरह के फूलो , जानवरों की आक्रतिया के कारण मंदिर शिल्पकला का बेहतरीन नमूना है ।
लगभग १५०० कारीगरों ने मिलकर काम किया तब सन् १२३१ में इस मंदिर को तैयार हुआ था। वो भी कोई एक या दो साल तक नहीं बल्कि पूरे १४ साल बाद इस मंदिर को ये खूबसूरती देने में कामयाबी हासिल हुई थी। उस वक्त मंदिर बनाए मे करीब १२ करोड़ ५३ लाख रूपए खर्च किए गए थे ।
मंदिर का गाईड हमारे समूह के आखिरी मंदिर पर छोड़ देता हैं, मंदिर परिसर मे सभी मंदिरों मे घूमने मे लगभग आधा से पौन घंटा लगता । मंदिर घूमने के बाद एक मलाल तो हमको रहा की मंदिर नियमो के कारण हम लोग सुन्दर दिलवाड़ा जैन मंदिर कोई भी फोटो नहीं ले पाए, कोई बात नहीं ! नियम तो सुरक्षा कारणों से ही बनाये जाते हैं।
दिलवाड़ा के बाद हम लोगो को अब अर्बुदा देवी (अधर देवी) मंदिर पर जाना था । जो की एक देवी शक्ति पीठ स्थल हैं । कुछ देर दिलवाड़ा के आस पास के बाज़ार मे बिताया और अपने अगले पड़ाव की और चल दिए ।
दिलवाड़ा जैन मंदिर (~ गूगल चित्र ) |
दिलवाड़ा जैन मंदिर की छत (~ गूगल चित्र ) |
दिलवाड़ा जैन मंदिर (~ गूगल चित्र ) |
दिलवाड़ा जैन मंदिर का द्रश्य (~ गूगल चित्र ) |
दिलवाड़ा जैन मंदिर के रचनात्मक स्तंभ (~ गूगल चित्र ) |
अर्बुदा देवी (अधर देवी)
अधर देवी शहर से ३ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा मे ऊँची पहाड़ी पर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित हैं । यह माउन्ट आबू के सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थल हैं, यहाँ नवरात्रों में काफी बड़ा मेला लगता हैं और खूब चल पहल रहती हैं । अधर देवी अर्बुदा देवी के नाम से भी बिख्यात हैं, क्योकि पोराणिक कथा के अनुसार अर्बूदा नाम के अजगर ने इसी जगह पर भगवान शिव का वाहन नंदी की गहरी खाई में गिरने से जान बचाई थी और इसी अर्बूदा नाम के अजगर के नाम पर इस पूरे नगरी का नाम माउन्ट आबू पड़ा जो की अर्बुदा का एक बिगड़ा हुआ शब्द हैं अबू - आबू पहाड़ । अधर देवी इसलिए कहते की, अधर का मतलब - होठ होता हैं । कहते की जब माँ पार्वती सती हुई तब यहाँ पर उनका अधर गिरे थे, इसलिए इस स्थान को अधर देवी के नाम से भी जाना जाता हैं ।
मंदिर का गुफा मंदिर प्रवेश द्वार |
लगभग पंद्रह मिनिट के अन्दर हम लोग दिलवाड़ा से अर्बुदा देवी पहाड़ी के आधार तक पहुँच गए आगे अर्बुदा देवी गुफा मंदिर तक जाने लिए ३६५ सीढियों का रास्ता बना हुआ हैं। सीढियों को पार करके मंदिर परिसर में गुफा में प्रवेश करने से पहले वहां बैठे एक आदमी में हमारे मोबाइल और कैमरा और हैण्ड बैग वही टोकन देकर जमा करा लिए । अर्बुदा देवी जी की दर्शन व् आराधना करने के पश्चात् ऊपर पहाड़ से नीचे नज़ारा अवलोकन किया, ऊपर से नज़ारा अद्भुत था, पर बदल छाए रहने के कारण रोशनी भी कम थी जिससे दूर तक साफ़ नज़र नहीं आ रहा था । कुछ समय वहा आराम किया और मस्ती करते हुए नीचे आधार स्थल पर आ गये ।
मंदिर के पास एक तेज ढलान चट्टान |
मंदिर के पास एक तेज ढलान चट्टान |
ओम शांति भवन (Universal Peace Hall )
ओम शांति भवन ब्रहम्कुमारी संस्था का शांति भवन हैं जो की माउन्ट आबू शहर के पास स्थित हैं । यहाँ पहुचने पर उन्ही सभी बातो (ब्रहम्कुमारी संस्था का उद्देश्य व् उनके द्वारा चलाये जा रहे कार्य ) की पुनरावृति हुई जो हमें शांति पार्क (Peace Park ) में बताई गयी थी। भवन का परिसर काफी शानदार था और भवन के बाहर एक बहुत ही सुन्दर हराभरा बगीचा बना हुआ था, चारो ओर शांति थी ओर वहा के सदस्य वहा आने वाले आगंतुको को अपने संस्था के बारे में समझा रहे थे ।
ओम शांति भवन (Universal Peace Hall ), माउन्ट आबू |
ओम शांति भवन में खम्बे रहित भारत का सबसे बड़ा हाल हैं जहाँ पाच हजार लोगो के एक साथ बैठने की व्यवस्था के साथ साथ १६ भाषाओ में अनुवाद करने के अनुवादक यन्त्र की भी व्यवस्था हैं । बिना खम्बे के निर्मित भारत के समसे बड़े हाल नाम लिम्का बुक आफ रिकार्ड में दर्ज हैं ।
शाम का समय हो रहा था , थोड़ी देर वहा का अवलोकन करने के पश्चात हम लोग वापिस गेस्ट हाउस के तरफ गाड़ी चल दिए । रास्ते में नक्की झील के साइड में ऊँचे स्थान पर टोड राँक ( एक मेढक के आकर की चट्टान, ऐसा लग रहा था की जैसे अभी झील के पानी में झलांग लगा देगा ) नज़र आ रहा था ।
टोड राँक |
कुछ समय बाद हम लोग गेस्ट हाउस वापिस आ गए और लगभग दो या ढाई घंटा आराम करने के बाद हम लोग फिर झील पर घुमने पहुच गए । रात होने लगी थी पर झील पर खूब रौनक थी । आज हम लोगो का कार्यक्रम झील में नाव से सैर करने का था, इसलिए टिकिट काउंटर से चप्पू से खेने वाले एक नौका का बुक की उस नौका का किराया २७० रुपये था और उसमे पाच से छह लोग आसानी से बैठ सकते हैं। कुछ समय इन्तजार करने के पश्चात हम लोग को झील मैं सैर करने के लिए नाव उपलब्ध हो गयी । नाव से सैर करते समय झील का वातावरण बिलकुल शांत था केवल चप्पू से पानी को धकेलने की आवाज आ रही थी । टापू पर बने फुब्बारे से पानी के फुआरे हवा से उड़कर हमारे ऊपर पड़ रही थी और हमें भिगो रही थी ।
झील में नाव के आकार का रेस्टोरेंट |
झील से दिखाई देता भारत माँ नमन स्थल |
इसी के साथ माउन्ट आबू का हमारा सफ़र यही समाप्त होता हैं, इस लेख के अगली कड़ी में उदयपुर (झीलों की नगरी ) की सैर के बारे में अपना अनुभव प्रस्तुत करूँगा ।
धन्यवाद ।
अपना भी इन जाडों में इधर जाने का प्रोग्राम है। आपकी जानकारी बहुत काम आयेगी।
ReplyDeleteनीरज जी .... जरुर जाईयेगा .... बहुत ही खूबसूरत जगह हैं....
ReplyDeleteआपको गोवर्धन अथवा अन्नकूट पर्व की हार्दिक मंगल कामनाएं,
ReplyDeleteaabu ki nai jankari ...kafi saal pahle gai thi ...
ReplyDeleteधन्यवाद दर्शी जी....
Deleteघुमक्कड़ पर आपका माउंट आबू से जुड़ा लेख पढ़ा था। देलवाड़ा मंदिर में चित्र ना खींचने देने का कारण मुझे समझ नहीं आता। मेरी समझ से नक़्काशी के मामले में ये राजस्थान के सबसे सुंदर मंदिरों में से एक है।
ReplyDeleteसही कहा मनीष जी आपने कि दिलवाड़ा जैन मंदिर नक्काशी के मामले में सबसे सुन्दर मंदिर हैं | फोटो खीचने पर प्रतिबन्ध मन को निराश करने वाला होता हैं पर की करे उनके अपने भी कुछ कारण ही होगे तभी तो उन्होंने प्रतिबन्ध लगाया हैं.....| मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद मनीष जी .....|
DeleteOh my goodness! Incredible article dude! Thank you, However I am
ReplyDeleteencountering issues with your RSS. I don't understand why I cannot join it. Is there anyone else having the same RSS problems? Anybody who knows the answer can you kindly respond? Thanks!!
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Hi interesting pics especially those of Jain mandir
ReplyDeletebeautifully written, thanks for refreshing the memories !
ReplyDeletethanks a lot
DeleteKuch pictures to aise hai jinko bas dekhte rahne ka man karta hai
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