Written By Ritesh Gupta
जय श्री कृष्णा ….राधे-राधे…!
मित्रों ! आज मैं एक और नई श्रृंखला शुरू करने जा रहा हूँ, जिसका नाम हैं → “पवित्र स्थल भक्ति यात्रा ” । इस श्रृंखला में मैं आपको समय-समय पर मेरे द्वारा किये गए पवित्र स्थलो के दर्शन लाभ का वर्णन लेखो के माध्यम से कराउंगा । आज के इस श्रृंखला के प्रथम लेख में मैं आपको ले चलता हूँ ……..भगवान श्री कृष्णजी की लीलास्थली ब्रज प्रदेश के पावन भूमि पर बसे परम पूजनीय पवित्र स्थल श्री गोवर्धन की यात्रा पर । इस यात्रा में मेरे साथ मेरे पिताजी, माताजी, मेरी धर्मपत्नी, और मेरे हर सफ़र के साथी मेरे दोनो बच्चे अंशिता और अक्षत शामिल थे ।
यह सप्ताहांत शनिवार का दिन था, अपने दिनभर काम-काज से घर लौटा तो घर के लोगो से सूचना मिली की कल रविवार को गोवर्धन दर्शन करने जाना हैं । मैंने कहा कि ,”अभी स्वास्थ्य ठीक नहीं हैं, कल की कल देखेंगे ” यह कहकर रात का खाना हम लोग सो गए । अगले दिन सुबह (26-अगस्त-2012, दिन रविवार) मेरी आँख जल्दी खुल गयी पर सभी घर के लोग अभी सोये पड़े थे । रात की बात याद आई तो मेरा मन भगवान श्री गिरिराज जी के दर्शन को आतुर हो उठा, फटाफट से सबको उठाया, चलने के लिए तैयार होने को कहा । इससे पहले मैं गोवर्धन नौ-दस साल पहले सात-आठ बार हो आया हूँ, और हर बार वहाँ की इक्कीस किलोमीटर की परिक्रमा भी लगा चुका हूँ और आज भगवान के अचानक बुलावे पर मेरा मन गोवर्धन जाने को आतुर हो उठा । वो कहा जाता हैं न जब तक भगवान न बुलाये तब तक उनके दर्शन नहीं होते तो आज हमारा भगवान के दरबार से बुलावा आया था । इस समय हिंदी कलेंडर के अनुसार पुरषोत्तम मास का (लौंद का महीना) माह चल रहा हैं और इस माह में गोवर्धन में भगवान श्री गिरिराज के दर्शन और गोवर्धन की परिक्रमा का विशेष महत्व माना जाता हैं । यह कहा जाता हैं कि इस माह में गोवर्धन की यात्रा करने से भक्तो को विशेष पुण्य लाभ की प्राप्ति होती हैं ।
खैर हम लोग जाने के लिए तैयार हुए और साथ ले जाने के लिए पूरी और आलू की सूखी सब्जी का खाना घर के लोगो ने तैयार किया । सुबह आगरा का मौसम बहुत सुहावना था, पर बारिश हो रही थी । जब बारिश हल्की हुई तब तक पौने-आठ समय हो गया था । हम लोग जल्दी से घर से निकले और राष्ट्रीय राजमार्ग दो (NH-2*) पर स्थित आगरा के वाटरवर्क्स चौराहे पर पहुँचकर मथुरा जाने वाली बस की प्रतीक्षा करने लगे । बारिश की रिमझिम कभी हल्की और कभी तेज हो रही थी । भीगने से बचने के लिए चौराहे के किनारे पर बने एक ट्रेफिक पुलिस के लकड़ी से बने काउंटर में शरण ली । हाइवे पर कई बसे आई और चली गयी पर मथुरा जाने वाली कोई बस नहीं आई, लगभग आधा घंटा प्रतीक्षा करने के बाद एक उ०प्र०प०नि० की एक बस मथुरा के लिए आई । फटाफट से बस में चढ़े और खाली सीट देखकर बैठ गए । बस में हमने मथुरा तक का टिकिट लिया, एक टिकिट का मूल्य रु.42/- था और टिकिट पर 64 किमी० दूरी अंकित थी । जबकि जहाँ से हम बैठे थे, वहाँ से मथुरा की दूरी 56 किमी० हैं । NH2* हाईवे से फरह, टोल प्लाज़ा, मथुरा रिफाइनरी होते हुए मथुरा के धोलीप्याऊ मोड़ तक पहुँच गए, बस यही से मथुरा के भूतेश्वर बस स्टैंड के लिए दाई तरफ सड़क पर मुड़ गयी । वैसे गोवर्धन जाने के लिए हाइवे के इसी मोड़ से करीब पांच किमी० आगे जाकर इसी हाइवे पर मथुरा का एक चौराहा पड़ता हैं जिसे गोवर्धन मोड़ चौराहा कहते हैं, यही से बायीं तरफ का रास्ता गोवर्धन को जाता हैं । हम लोगो को बस स्टैंड जाना था, क्योंकि यहाँ से गोवर्धन के लिए खाली बस आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं ।
ग्यारह बजे के आसपास हम लोग मथुरा के बस स्टैंड पहुँच गए । बस स्टैंड के पीछे से ही रेलवे लाइन जा रही थी, जिस पर से गुजरती ट्रेन यात्री दिल को सुकुन दे रही थी । कुछ देर बाद ही हमें गोवर्धन जाने वाली एक बस मिल गयी, लगभग बस खाली ही थी सो आसानी से सीट मिल गयी । बैठने के कुछ देर बाद ही बस चल दी कुछ देर बाद बस में ही हमने गोवेर्धन तक का टिकिट लिया, एक टिकिट का मूल्य रु.16/- था और टिकिट पर 23 किमी० दूरी अंकित थी । कुछ देर चलने के बाद बस मथुरा के कृष्णा नगर के जाम में फंस गयी, जाम में धीरे-धीरे चलते-चलते हाईवे (NH-2*) पर गोवर्धन मोड़ चौराहे पर पहुँच गए । चौराहा पार करके बस फिर से गोवर्धन मार्ग (MDR-94W) पर भयंकर जाम में फंस गयी, बस में बहुत गर्मी हो गयी थी और इस गर्मी और जाम से घबराकर कई लोग बीच रास्ते ही बस से उतर गए थे । लगभग एक घंटा जाम धीरे-धीरे चलते हुए आखिरकार बस जाम से निकल ही गयी । जाम से निकलते ही बस में “गोवर्धन महाराज की जय” का जोर से उद्घोष हुआ । डेढ़ बजे के आसपास बस गोवर्धन के बस अड्डे पर पहुँच गयी, इस गोवर्धन में काफी जन-सैलाब उमड़ा हुआ था और बस स्टैंड एक कार पार्किंग में बदल सा गया था ।
Toward the Daan Ghati, Shri Giriraj Temple (गोवर्धन का बाजार, यह रास्ता दान घाटी, श्री गिरिराज मंदिर को जाता हुआ ) |
भौगोलिक और पौराणिक द्रष्टि से गोवर्धन नगर →
गोवर्धन भारत के उत्तरप्रदेश राज्य में मथुरा जिले के पश्चिम दिशा में स्थित हैं । गोवर्धन राष्ट्रीय राजमार्ग-2 से राज्जीय मार्ग MDR-94W पर अडिग नाम के कस्बे से होते हुए लगभग बीस किमी० दूर हैं । गोवर्धन दिल्ली से १७० किमी०, आगरा से ७५ किमी० और मथुरा से २३ किमी० दुर हैं । गोवर्धन में श्रद्धालुओं और आगुन्तको के ठहरने लिए धर्मशाला, बजट होटल और खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था हैं । भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, गोवर्धन, नंदगाँव और उसके आसपास के सभी क्षेत्र को ब्रज भूमि और यहाँ के वासियों को ब्रजवासी कहा जाता हैं । जन्माष्टमी, होली और दीपावली के त्यौहार के समय ब्रज क्षेत्र की छटा ही निराली हो जाती हैं और यहाँ का सारा वातावरण भगवान श्री कृष्ण और राधारानी की भक्ति से पूर्ण रूप से सारोवार हो जाता हैं । यहाँ पर हर किसी की जुबां पर राधे-राधे और जय श्री कृष्णा का ही शब्द होता हैं । गोवर्धन का मुख्य आकर्षण यहाँ पर स्थित पवित्र गोवर्धन पर्वत हैं, जिसे गिरिराज पर्वत के नाम से भी पुकारा जाता हैं । यह पर्वत करीब आठ किलोमीटर लंबा हैं पर इसकी ऊँचाई अधिक नहीं हैं । यह पर्वत छोटे-बड़े बलुआ पत्थरों से लंबे आकार में निर्मित हैं । पूरा नगर इसी पर्वत के इर्द गिर्द बसा हुआ हैं, मुख्य गोवर्धन मार्ग पर बस स्टैंड से कुछ कदम की ही दूरी पर ही दान घाटी में श्री गिरिराज मुखारबिंद का प्रसिद्ध मंदिर हैं । गोवर्धन परिक्षेत्र में कई कुण्ड हैं जिनमे से मुख्य कृष्णा कुण्ड, राधा कुण्ड, कुसुम सरोवर हैं और एक सरोवर पवित्र गंगा सामान मानसी गंगा सरोवर हैं ।
अब मैं आपको संक्षेप में गोवर्धन पर्वत की पूजा किये जाने की पीछे की पौराणिक कथा बताता हूँ । द्वापरयुग में भगवान श्री कृष्ण के लीलाकाल में ब्रज प्रदेश के सभी वासी वर्षा के देवता इन्द्रदेव की पूजा किया करते थे । उनकी श्रद्धा थी कि यदि इंद्र प्रसन्न रहेगे तो ब्रज में खुशहाली बनी रहेगी और उनके खेत, बाग हरे-भरे रहेगे । उस समय भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियो को समझाया कि ब्रज कि मौलिक खुशहाली का कारण इंद्र नहीं बल्कि गोवर्धन हैं, क्योंकि गोवर्धन से हमें शुद्ध जल के झरने, गायों के लिए हरी-भरी पोषक घास, जीव-जन्तुओ के लिए आशय, शुद्ध वातावरण मिलता हैं । अतः हमें गोवर्धन की पूजा करनी चाहिये । ब्रजवासियों ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर गोवर्धन की पूजा आरंभ कर दी, तभी से गोवर्धन पूजा का चलन शुरू हो गया । अपना तिरस्कार और पूजा न होते देख इन्द्रदेव को क्रोध आ गया और उन्होंने पूरे ब्रज प्रदेश में भयंकर मूसलाधार वर्षा आरंभ कर दी । इस कारण से पूरे ब्रज प्रदेश संकट में छा गया और बाढ़ के पानी से सभी कुछ नष्ट होना शुरू हो गया । ब्रजवासियो की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण सभी ब्रजवासियों और पालतू जीवो को गोवर्धन पर्वत की शरण में ले आये । वहाँ पर उन्होंने गोवर्धन की पूजा प्रार्थना की, फिर भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन को अपनी अनामिका पर उठा लिया और सभी को गोवर्धन के नीचे आने को कहा । इस प्रकार भगवान की लीला से ब्रज वासियों के प्राणों की रक्षा हुई । इन्द्रदेव ने लगातार सात दिन और रात तक वर्षा की फिर भी वह ब्रजवासियो का कुछ भी अहित न कर पाए । इस प्रकार उनका इन्द्रदेव घमण्ड दूर हो गया और उन्हें अपनी गलती का क्षमा भगवान श्री कृष्ण से मांगी । वर्तमान में दिनों-दिन श्री गोवर्धन की मान्यता और लोगो का अटूट विश्वास बढ़ता जा रहा हैं । हजारों लाखो की संख्या में यहाँ पर भक्तो का जमावबाड़ा लगा ही रहता हैं ।
(अतिसुन्दर हैं श्री गिरीराज मुखारबिंद मंदिर, दानघाटी ) |
श्री गिरीराज जी महाराज मुखारबिंद मंदिर →
अब चलते हैं अपने यात्रा वृतांत कि तरफ । बस से उतरने के बाद हम लोग सीधे मुख्य मार्ग से होते हुए श्री गिरिराज मुखारबिंद मंदिर पहुँच गए । जहाँ यह मंदिर स्थापित हैं उस स्थान को दानघाटी कहा जाता हैं, क्योंकि पुराणों में लिखा हैं कि राधारानी जी ने यहाँ पर श्री कृष्ण भगवान को दान किया था । मंदिर काफी सुन्दर बना हुआ था और मंदिर के ऊपर गोवर्धन पर्वत उठाये जाने की लीला का प्रदर्शन सुन्दर मूर्तियों द्वारा किया गया था । सड़क किनारे मंदिर का मुख्य गर्भगृह करीब एक मंजील नीचे होने के कारण सबसे पहले बाहर से ही प्रभु गिरिराज जी के झांककर दर्शन किये । मंदिर में प्रभु श्री गिरिराज जी एक शिला के रूप में विराजमान हैं, जो कि गोवर्धन पर्वत का ही एक हिस्सा हैं । मंदिर के अंदर काफी भीड़ थी और भक्तो के द्वारा प्रभु पर दूध और फूलो से अभिषेक किया जा रहा था ।
Beautiful of sculpture above Temple (मंदिर के ऊपर मूर्तियों से गोवर्धन पर्वत धारण करने की सुन्दर प्रस्तुति) |
हम लोगो ने एक जूता-चप्पल स्टैंड पर अपनी पादुकाए, सामान रखा और मंदिर के सामने की एक दूकान से कुल्लड़ में अभिषेक के लिए दूध, फूल और प्रसाद लिया । दूध क्या उन्होंने तो पानी में ही दूध मिला रखा था, बिल्कुल पतला पानी जैसा केवल सफ़ेद रंग करने के लिए दूध कुछ दूध डाल रखा था । खैर हम लोगो ने भीड़-भाड़ में मंदिर के प्रवेश द्वार से मंदिर में प्रवेश किया । जब मंदिर के अंदर पहुंचे तो मुख्य गर्भगृह में साफ़-सफाई और श्री गिरिराज जी के श्रंगार हेतु अभिषेक बंद कर दिया गया था, पर श्री गिरिराज जी के बाहर से दर्शन हो रहे थे । शिला रूपी श्री गिरीराज जी का श्रंगार होने के बाद उनका रूप बड़ा ही मनमोहक और भक्तो के चित्त को प्रसन्न करने वाला हो जाता हैं । मंदिर परिसर की पूरी धरती दूध और जल के चढ़ाये जाने के कारण कुछ ज्यादा ही गीली हो रही थी । हमने गर्भगृह के सामने ही श्री गिरिराज के प्रतिरूप एक ओर शिला पर अभिषेक किया । अभिषेक करने बाद श्री गिरिराज जी और बगल में ही श्री राधा कृष्णा के सुन्दर और भव्य मूर्ति के दर्शन किये और प्रसाद लगाया साथ-साथ मंदिर की एक परिक्रमा की । यहाँ पर फोटो खींचना प्रतिबंधित था, इसलिए मूर्ति विग्रह का हमने कोई भी फोटो नहीं लिया ।
Birth of Lord Sri Krshna Sculpture Inside Temple Hall (मंदिर के हाल में भगवान श्री कृष्णा जन्म को प्रदर्शन )
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मंदिर के अंदर चलते हुए हम लोग एक बड़े से हाल में पहुँच गए । यहाँ पर पर कई देवी-देवताओं के मंदिर हैं, हमने सभी भगवान का दर्शन किये और उनका आशीर्वाद लिया । कुछ देर हाल में बिताने और अच्छे से दर्शन करने के बाद हम लोग मंदिर से बाहर आ गए ।
गोवर्धन की सात कोस की परिक्रमा →
अपना सामान और अपनी पादुकाए स्टैंड से लेने के बाद हम उसी मार्ग से वापिस चल दिए । मंदिर से कुछ कदम चलने के बाद दाई तरफ (मंदिर के पश्चिम दिशा में) एक मार्ग आया जिसमे काफी भीड़ नंगे पैर जा रही थी । यह यहाँ का परिक्रमा मार्ग हैं और यही से गोवर्धन की परिक्रमा की शुरूआत होती हैं । गोवर्धन में श्री गिरिराज जी के दर्शन के महत्व के बाद गोवर्धन पर्वत की प्राचीन परिक्रमा का भी बहुत पुण्यदायी, पापनाशक महत्व माना जाता हैं । यह परिक्रमा दो भागो विभक्त हैं । पहली परिक्रमा बड़ी परिक्रमा कहलाई जाती हैं जो चार कोस (12 किमी०) होती हैं । यह दानघाटी मंदिर के पास से शुरू होकर पूरे गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हुए मंदिर से थोड़ा आगे समाप्त हो जाती हैं । इस परिक्रमा मार्ग में गोवर्धन पर्वत के साथ कई सुन्दर मंदिर, श्री नाथजी का मंदिर, पुछरी का लोटा, जतीपुरा आदि नाम की जगह आती हैं । दूसरी परिक्रमा छोटी परिक्रमा कहलाई जाती हैं जो तीन कोस (9 किमी०) की होती हैं । यह परिक्रमा जहाँ पर बड़ी परिक्रमा समाप्त होती हैं, उसके सामने के रास्ते से शुरू होती हैं और बस स्टैंड के पास से होते हुए दानघाटी पर समाप्त हो जाती हैं । इस परिक्रमा मार्ग में गोवर्धन पर्वत के अवशेष के साथ-साथ, कुसुम सरोवर, राधा कुण्ड, कृष्ण सरोवर, मानसी गंगा सरोवर और मानसी गंगा पर स्थित गिरिराज का दूसरा मंदिर आता हैं । हर माह की पूर्णिमा, सावन और विशेष तिथियों को यहाँ परिक्रमा लगाने वाले भक्तो की संख्या काफी आधिक बढ़ जाती हैं और यहाँ मेले का भी आयोजन किया जाता हैं । कुल मिलाकर गोवर्धन क्षेत्र की सात कोस (21 किमी०) परिक्रमा की जाती हैं और पूरे मार्ग में भक्त राधे-राधे और गोवर्धन महाराज की जय का उदघोष करते हुए भक्ति-भाव से परिक्रमा लगाते हैं । यह परिक्रमा भक्त लोग नंगे पैर, दंडवत, दूध की धार से, लेटकर, रिक्शे आदि से अपने सामर्थ्य के अनुसार पूरा करते हैं । हमने भी एक रिक्शे वाले से परिक्रमा का किराया पूछा तो उसने रिक्शे से बड़ी परिक्रमा के रु.350/- और दोनो परिक्रमा के 550/- बताए ।
Start holy Parikrima from here (चार कोस वाली बड़ी परिक्रमा का शुभारंभ यहाँ से होता हैं, देखो कितना जनसैलाब परिक्रमा के लिए उमड़ा हुआ हैं ) |
खैर हम लोगो को परिक्रमा तो लगानी नहीं थी सो दूर से परिक्रमा मार्ग के हाथ जोड़े और आगे बढ़ गए । लगभग आधा दिन बीत चुका था और अब भूख भी लग रही थी तभी सड़क से गुजरते हुए हमे ब्रज प्रदेश में प्रसिद्ध ब्रजवासी मिठाई वाले की दुकान/रेस्टोरेंट नजर आया । हम लोगो ने दूकान में प्रवेश किया, दूकान वातानुकूलित थी जिससे हमे कुछ गर्मी में राहत मिली । हम लोगो ने दूकान से गरम-गरम बेढ़ई-सब्जी और समोसे लिए और साथ में अपने साथ लाये खाने को भी निकाल लिया । हम लोगो ने वहाँ आराम से भोजन किया और अपनी भूंख को शांत किया ।
पतित पावनी मानसी गंगा कुण्ड और मंदिर श्री मुकुट मुखारबिंद गिरिराज जी →
भोजन करने के पश्चात हम लोग मानसी गंगा और श्री मुकुट मुखारबिंद गिरिराज जी के दर्शन करने चल दिए । यह मंदिर और कुण्ड छोटी परिक्रमा मार्ग पर पड़ती हैं । दुकान से निकलने के बाद बस स्टैंड की तरफ उसी मार्ग से चलते हुए एक बड़ा सा द्वार बायीं हाथ पर पड़ता हैं । इसी द्वार से मानसी गंगा सरोवर का रास्ता जाता हैं और यही छोटी परिक्रमा मार्ग का अंतिम चरण भी हैं, जो दान घाटी के मंदिर पर जाकर समाप्त हो जाती हैं । हम लोग इसी रास्ते से होते हुए लगभग एक-डेढ़ किमी० चलने के बाद मानसी गंगा कुण्ड पहुँच गए । कई सारी प्रसाद-फूल, दीपक, मिठाई, खिलौने आदि की दुकाने पूरे रास्ते भर थी और उस रास्ते से परिक्रमा वाले और मानसी गंगा से आने व जाने वाले लोगो की भी बहुत भीड़ थी ।
Beautiful gate toward Mansi Ganga (मानसी गंगा जाने का मुख्य द्वार, यही पर तीन कोस वाली छोटी परिक्रमा का समापन होता हैं )
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मानसी गंगा कुण्ड को गंगा नदी के समान पवित्र माना जाता हैं । एक पौराणिक विज्ञप्ति के अनुसार कालान्तर में इसका निर्माण भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं किया था । कुण्ड के चारों तरफ लाल बलुआ पत्थर के सुन्दर घाट बने हुए है और जल तक पहुँचने के लिए सीड़िया बनी हुई हैं । कुण्ड का जल हरे रंग का हैं और बरसात का मौसम होने के कारण इस समय कुण्ड जल से लबालब भरा हुआ था । कुण्ड के किनारे परिक्रमा वाले मार्ग की तरफ एक भव्य और सुन्दर श्री मुकुट मुखारबिंद गिरिराज जी का प्राचीन मंदिर हैं । इस मंदिर में श्री गिरिराज जी एक शिला के रूप में विराजमान हैं जो श्रद्धालुओ की भक्ति से प्रसन्न हो उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं ।
यहाँ पहुँचने पर मानसी गंगा कुण्ड का स्वरूप बड़ा ही निराला और मनमोहक लग रहा था । कुछ देर बाहर के घाट से कुण्ड निहारने के बाद हमने मंदिर प्रवेश किया । भक्त लोग अपनी परिक्रमा की समाप्ति के समय यही मानसी गंगा में स्नान कर अपने आप को पवित्र करते हैं । भक्तो के स्नान हेतु मंदिर के पास ही मानसी गंगा से सीधे पानी निकालकर फुआरे और नल कि व्यवस्था की हुयी हैं और मंदिर के घाटो को लोगो कि सुरक्षा हेतु जाली लगाकर बंद कर दिया गया हैं । मंदिर परिसर में ही प्रसाद फूलमालाओं की दुकाने हैं और मंदिर भवन के अंदर श्री कृष्णा लीला सम्बन्धी कई जगह सुन्दर चित्रकारी हो रही थी ।
हम लोगो ने वही नल के जल से हाथ-पैर धोकर अपने आप को भी पवित्र किया । उसके बाद मंदिर में प्रभु श्री मुकुट मुखारबिंद गिरिराज जी और आसपास बने अन्य देवी-देवताओं के दर्शन लाभ प्राप्त किया । हमें यहाँ पर एक बात विचित्र लगी, वो यह की मंदिर में प्रभु को लगाये छप्पन भोग का प्रसाद दान की रसीद कटाने पर ही मिल रहा था और जितना बड़ा दान होता था, उतना ही अधिक प्रसाद मिलता था । खैर इस बात पर मैं अधिक चर्चा नहीं करना चाहता हूँ । यहाँ पर भी फोटो खींचना प्रतिबंधित था सो हमने मूर्ति विग्रह का कोई फोटो नहीं लिया ।
श्रीकृष्ण की बाल लीला को प्रस्तुत करती सुंदर चित्रकारी |
हम लोगो ने मंदिर के शांत वातवरण में कुछ देर बिताए और कुछ फोटो भी खींची । उसके बाद हम लोग उस मार्ग से कुछ दुकानों से खरीददारी करते हुए वापिस बस अड्डे पहुँच गए । बस अड्डे पर हमें एक बस आगरा के लिए मिल गयी, पर पहले मथुरा होकर जा रही थी । सो हम लोग उस बस में बैठ कर वापिस चल दिए । एक घंटे में मथुरा के भूतेश्वर बस अड्डे पर पहुंचे के बाद हमे आगरा के लिए एक बस मिल गयी । बारिश के बीच शाम के सात बजे के आसपास हम लोक अपने आगरा स्थित घर पहुँच गए ।
गोवर्धन यात्रा का यह लेख अब यही समाप्त होता हैं । आपको आज का यह लेख कैसा लगा, आपकी प्रतिक्रिया और सलाह का हमेशा स्वागत हैं । जल्द ही इस श्रृंखला के अंतर्गत अन्य भक्ति यात्रा पर चलेंगे तब तक के लिए आप सभी पाठकों को धन्यवाद और राधे -राधे !
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Table of Contents →
पवित्र स्थल भक्ति यात्रा श्रृंखला के लेखो की सूची :
1.गोवर्धन (Goverdhan)→ ब्रज प्रदेश की पवित्र भूमि (पवित्र स्थल भक्ति यात्रा)
2. श्री वृन्दावन धाम - एक दिव्य स्थल (Vrindavan - A Divine Place )
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2. श्री वृन्दावन धाम - एक दिव्य स्थल (Vrindavan - A Divine Place )
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बहुत सुन्दर विवरण | आवश्यकतानुसार घटनाओं की विवेचना की है और आवश्यकतानुसार बिना विवेचना किये ही उन्हें छोड़ा भी है |
ReplyDeleteलेख पर प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद.....
Deleteकुछ बातों को कभी-कभी आवश्यकतानुसार बिना विवेचना किये छोड़ देना ही हितकर होता हैं....|
मौका मिला पिछली बार यहां जाने और दूध चढाने का ! भीड़ बहुत होती है और कहूँगा कि अव्यवस्था भी बहुत ज्यादा होती है ! ब्रज का एक पवित्र स्थक है ये जिससे आपने परिचित कराया मित्रवर रितेश जी !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी...
Deleteबहुत सुन्दर विवरण |
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