नमस्कार दोस्तों !
तारीख २९ जून २०११ दिन बुधवार था । मैंने अपने पिछले धारावाहिक लेख "माउन्ट आबू" में लिखा था की कैसे हमने अपने दो दिन माँ अम्बाजी, माउन्ट आबू और उसके आस पास के दर्शनीय स्थल की सैर करने में बिताये थे और दो दिन पता ही नहीं चले की कब ख़त्म हो गए। आज हमारे सफ़र का तीसरा दिन था, और तय कार्यक्रम के अनुसार आज हम लोगो को आज माउन्ट आबू से उदयपुर का सफ़र तय करना था ।
हम लोग सुबह ६ बजे ही उठ गए, आज की सुबह भी पिछली सुबह की तरह ठंडी थी । खिड़की से बाहर झाँका तो देखा की पूरा शहर सुनसान था, कोई भी चहल कदमी नहीं थी । हम लोग जल्दी - जल्दी उठकर तैयार हुए, चाय - नाश्ता किया, सारा सामान समेटा और गेस्ट हाउस वाले का हिसाब किया । ८ बजे के आसपास हम लोग गेस्ट हाउस के बाहर बस स्टैंड जाने के लिए नीचे सड़क पर आ गए और बस स्टैंड तक सामान ले जाने के लिए हाथ से धकलने वाली गाड़ी वाले से ४० रुपये किराये पर गाड़ी तय की और हम लोग ने आपना सारा सामान गाड़ी में लगाया और बच्चो को भी उसमे बैठा दिया और बाकी लोग बस स्टैंड तक पैदल ही चल दिए। १० मिनिट में हम लोग बस स्टैंड पंहुच गए। रिम झिम - रिम झिम हलकी फुलकी बारिश भी शुरू हो गयी और ठंडी हवा भी चल रही थी, जिससे ठण्ड और भी बढ़ गयी।
उदयपुर जाने वाली बस, स्टैंड पर पहले से खड़ी हुई थी, बस में हम लोगो ने अपना सामान लगाया और पहले से आरक्षित की हुई सीटो पर बैठ गए । कुछ समय (लगभग ९:१०) बाद बस बस चल दी । रास्ते में बस वाले ने कई होटलों और गेस्ट हाउस से अपनी बुक की गई सवारियों बस में बैठाया जिसके कारण बस को अपने गंतव्य स्थान को चलने में थोड़ी देर हुई ।
माउन्ट आबू से उदयपुर की दूरी लगभग 185 किलोमीटर हैं
। उदयपुर जाने का रास्ता आबू रोड से होकर जाता हैं, आबू रोड से उदयपुर
एक चार लाइन के राष्ट्रीय राजमार्ग १४ पिडवारा तक और पिडवारा से राष्ट्रीय राजमार्ग ७६ (National Highway 76) से सीधा जुड़ा हुआ हैं
। यह दूरी बस के द्वारा तय करने में लगभग ३.५ से ४ घंटे का समय लगता हैं ।
उदयपुर राजस्थान का एक मुख्य शहर हैं, उदयपुर में पाँच बड़ी झीले हैं इस कारण से इसे झीलों की नगरी के साथ-साथ पूर्व का वेनिस भी कहा जाता हैं। मुग़ल बादशाह अकबर के द्वारा चित्तौड़गढ़ कब्ज़ा करने के बाद महाराणा उदयसिंह ने इस नगर को अरावली पर्वतमाला की तलहटी में कई झीलों से युक्त स्थान पर बसाया था, और उन्ही के नाम पर इस नगर का नाम उदयपुर रखा गया हैं । उदयपुर घूमने फिरने की एवं छुट्टी बिताने की एक बहुत ही खूबसूरत जगह हैं । रेल के द्वारा उदयपुर देश के मुख्य शहर अजमेर, जयपुर, दिल्ली, आगरा से सीधे जुड़ा हुआ हैं ।
माउन्ट आबू पहाड़ो के टेड़े-मेड़े सर्पिलाकार रास्तो को पार करके बस ४० मिनिट में आबू रोड पहुच गयी, माउन्ट आबू से आबू रोड तक रास्ता बहुत ही खूबसूरत था, चारो ओर सुन्दर हरियाली, छोटे छोटे झरने, सर्पिलाकार रास्ते, ऊचे नीचे पहाड़ और खाइया सब कुछ अपनी यादो में संजोकर अपनी गंतव्य की और चले जा रहे थे ।
" हम तो सफ़र किये जा रहे हैं, मंजिले पीछे छुटती जा रही हैं , बस यादे दिल में संजोकर,
नई मंजिले देखने की चाह में, दिल में अपनी यही हसरत लिए , हम तो सफ़र किये जा रहे हैं । "
ज्यो ज्यो हम लोग माउन्ट आबू से दूर होते जा रहे थे वैसे ही वातावरण में गर्मी का एहसास होता जा रहा था । आबू रोड पहुचने के बाद बस राष्ट्रीय राजमार्ग १४ (NH 14) से होते हुए ४८ किलोमीटर दूर पिडवारा (Pindwara) से सीधे हाथ की तरफ मुड़ कर राष्ट्रीय राजमार्ग ७६ (NH 76) पर आ जाती हैं जो की उदयपुर का सीधा रास्ता हैं, यह राष्ट्रीय राजमार्ग ७६ लगभग १००७ किलोमीटर लम्बा हैं और यह
राजस्थान के पिडवारा (Pindwara) से शुरू होकर, आबू रोड, उदयपुर, चित्तौड़गढ़
, कोटा मध्य प्रदेश के शिवपुरी और उत्तर प्रदेश के झाँसी शहर, महोवा और बांदा होते हुए इलाहाबाद तक जाता हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग होने के कारण माउन्ट आबू से उदयपुर का रास्ता काफी सुरक्षित और आसान हैं ।
रास्ते में ११ बजे के आसपास बस ड्राइवर में यात्रियों के तरो ताज़ा होने और पेट पूजा करने के लिए राजमार्ग के किनारे एक अच्छे से रेस्टोरेंट पर बस को रोक दिया । बस के आने से पहले रेस्टोरेंट बिलकुल खाली था पर अब वह इस बस के यात्रियों के आने से गुलजार हो गया था, जाहिर सी बात हैं जब कोई सवारियों से भरी हुई बस यहाँ रोकता तभी यह राजमार्ग के किनारे बने रेस्टोरेंट/होटल तभी गुलजार होते हैं । खैर हम लोगो को भी भूख लग रही थी सो हमने भी कुछ आलू के गरम परांठे, दही, अचार और चाय से हल्की पेट पूजा की। १५ मिनिट बाद बस अपने गंतव्य के लिए चल दी ।
बस ने हम लोगो (सभी सवारियों को भी) को १:१५ बजे के आस पास उदयपुर में एक सरकारी ऑफिस (शायद शाचिवालय) के पास उतार दिया था । माउन्ट आबू से उदयपुर पहुचने में चार घंटे का समय लगा था, जिसमे बस के ड्राईवर ने बस को दो जगह, एक राजस्थानी कसबे पिडवारा पर और एक रेस्टोरेंट पर कुछ देर के लिए रोका था ।
सरकारी ऑफिस (शायद शाचिवालय) के आसपास हम लोगो ने होटल ढूढा पर वहा आस पास कोई भी होटल नहीं था, एक ऑटोरिक्शा वाले से पूछा तो उसने बताया "होटल तो आप लोगो को उदयपोल में होटलों वाली गली जो की उदयपुर केंद्रीय बस अड्डा के पास में हैं, वहा पर मिलेगा और आप लोगो को वहा पर पाच रुपये प्रति सवारी पर आप सभी को वहां छोड़ दूंगा, यदि आप लोग चाहे तो आज आपको को उदयपुर शहर भी घुमा दूंगा "। हम लोग ऑटोरिक्शा वाले के साथ जाने के लिए तैयार हो गए ।
ऑटो वाले ने हम लोगो को पांच रुपये प्रति सवारी पर दो ऑटो में हम लोगो को उदयपोल पर होटलों वाली गली में एक अच्छे से होटल का सामने उतार दिया, उस होटल का नाम था "होटल सवेरा"। होटल सवेरा में हम लोगो ने एक तीसरी मंजिल पर मोलभाव करके १२०० रूपए प्रति दिन पर एक AC फेमिली रूम ले लिया, इस होटल में रेस्टोरेंट, लिफ्ट की भी अच्छी सुविधा थी। लगभग एक, सवा घंटा के आस पास हम उदयपुर शहर घूमने के लिए तैयार हुए, होटल के ही रेस्टोरेंट में खाना खाया। दोनों ऑटोरिक्शा वाले अभी वही पर मोजूद थे और उदयपुर शहर घुमाने के लिए तैयार थे। उन लोगो ने शहर १० पॉइंट दिखाने के लिए प्रति ऑटो ४०० रुपये मांगे पर थोडा मोल भाव करने पर वह ३०० रुपये प्रति ऑटोरिक्शा पर तैयार हो गए ।
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होटल के कमरे से दीखता बस अड्डा और उदयपोल (चौराहा) |
ऑटोरिक्शा में बैठकर हम लोग सबसे पहले जगदीश मंदिर पहुच गए, यह मंदिर पुराने उदयपुर शहर के अन्दर बड़ा पोल से कुछ ही दूरी पर स्थित है। जगदीश मंदिर एक प्राचीन और उदयपुर के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हैं और यह कुछ सीढियों को चढ़कर थोड़ी ऊचाई पर बना हुआ हैं । जगदीश मंदिर श्री भगवान् विष्णु जी (श्री लक्ष्मी नारायण जी) का एक बहुत ही पुराना मंदिर हैं । मंदिर में भगवान् विष्णु जी की काले रंग की बहुत सुन्दर, सावरी सलोनी, मनोहारी मूर्ति विराजमान हैं ।
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जगदीश मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार |
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जगदीश मंदिर परिसर में मुख्य भगवान् लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर |
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भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी की मूर्ति |
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जगदीश मंदिर परिसर में गरुड़ जी की मूर्ति |
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पत्थरो पर की गयी सुन्दर नक्काशी |
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भगवान विष्णु जी के दर्शन करने बाद मंदिर को चारो ओर से देखा, यह मंदिर कलाकारी ओर नक्काशीदार पत्थरो से निर्मित बहुत ही सुन्दर पच्चीकारी से परिपूर्ण दर्शनीय मंदिर हैं। मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के ठीक सामने पीतल से निर्मित गरुण जी की एक मूर्ति, भगवान विष्णु जी के मंदिर की ऊचाई जितने ऊचे चबूतरे पर भगवान विष्णु जी की वंदना करते हुए हाथ जुड़े स्थिति में स्थापित हैं। कुछ देर हम लोगो ने मंदिर में बिताया और वहा से पिछोला झील के और ऑटो से चल दिए।
कुछ ही देर में हम लोग पिछोला झील पर पहुच गए, ऑटो वाले ने हमें किसी हवेली व संग्रहालय के पास झील के घाट के पास उतार दिया था। झील का पानी नीला था और घाट के पास झील में हरे रंग काफी काई जमी हुई थी, पिछोला झील उदयपुर की झीलों में एक बढ़ी झील हैं। ठंडी और तेज हवा चल रही थी जिस से हम लोगो को गर्मी का अधिक अहसास नहीं हो रहा था, झील के उस पार ऊची पहाड़िया नज़र आ रही थी ।
पिछोला झील झील के किनारे सिटी पैलेस (राजमहल जिसे महाराणा उदयसिंह ने बनवाया था, पर अब यह एक संग्रहालय हैं।) बना हुआ हैं और झील में एक बड़े टापू पर जगनिवास महल जो अब उदयपुर का सबसे महंगा और सबसे बड़ा पांच सितारा होटल "लेक पैलेस" में बदल गया हैं, और उससे कुछ ही दूरी पर दूसरे टापू पर जगनिवास मंदिर हैं। होटल "लेक पैलेस" और जगनिवास मंदिर तक जाने के लिए सिटी पैलेस के पास से किराये पर नाव की सुविधा उपलब्ध हैं। झील के बीच में सफ़ेद रंग पत्थरों से बना होटल "लेक पैलेस" एक अद्भुत होटल हैं, और अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध हैं। समय अधिक हो जाने के कारण सिटी पैलेस संग्रहालय नहीं जाना हो पाया, क्योकि सिटी पैलेस ढंग देखने के लिए अधिल समय की जरुरत होती हैं, और शाम के समय यह बंद भी हो जाता हैं । सिटी पैलेस न देख पाने का हमको अफ़सोस रहा ।
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पिछोला झील |
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मैं भी एक बार उदयपुर गया था लेकिन यादें ताजा नहीं हुईं। क्यों? कि जो जगहें मैं नहीं देख पाया था, आपने इस कडी में वे जगहें दिखा दी हैं।
ReplyDeleteआप जून में राजस्थान के ठण्डे इलाकों में घूम रहे हैं तो ठण्ड लगना स्वाभाविक ही है।
और हां, आपने लिखा है कि मध्य प्रदेश में कोटा... कोटा मध्य प्रदेश में कब चला गया। फटाफट इसे राजस्थान में स्थापित करो।
i need to visit udaipur soon!!
ReplyDeletehttp://www.myunfinishedlife.com
First time i read it blog in hindi about Udaipur beautiful tour destination in India.
ReplyDeletevery well written, thanks for refreshing the memories.
ReplyDeleteThanks a lot Mahesh ji
Deletevery well written ritesh ji
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