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Tuesday, October 11, 2011

माउन्ट आबू : पर्वतीय स्थल के मुख्य आकर्षण (2)..............4


नमस्कार दोस्तों ! पिछले तीन भाग से आगे ।  लगभग दोपहर हो चुकी थी और अब भूख भी हमें सताने लगी थी, एक अच्छा से रेस्टोरेंट तलाश किया जो शांति पार्क के पास में ही था  और राजस्थान के मुख्य व्यंजन " दाल बाटी " और " चूरमा " का  का लुफ्त उठाया । एक बात तो हैं की राजस्थान के माउन्ट आबू  के आस पास लगभग सभी जगह खाना स्वादिस्ट और स्वछता से परिपूर्ण था । भोजन करने के बाद हम लोग अपने अगले पड़ाव - अचलगढ़  शिव  मंदिर  पहुच गए ।   

अचलगढ़  शिव  मंदिर

अचलगढ़  शिव  मंदिर माउन्ट आबू से लगभग ११ किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में हैं और पास  मे ही अचलगढ़ जैन मंदिर भी कुछ कदम की दूरी पर हैं। अचलगढ़  के आस पास काफी प्राचीन मूर्तिया बनी हुयी हैं ।

अचलगढ़  शिव  मंदिर एक बहुत ही सुन्दर और प्राचीन  मंदिर हैं । मंदिर परिसर में शिवाजी के मंदिर के आगे की नंदी जी की बड़ी मूर्ति हैं  जो पीतल से बनी हुयी हैं । हम लोग जब मुख्य शिवाजी के मंदिर में  प्रवेश किया तो वहा बहुत अँधेरा था और मंदिर जमीन से २ फुट लगभग नीचे था, कुछ जलते हुए दीये मंदिर के अन्दर के अँधेरे को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे । वैसे आम तौर पर शिव लिंग उपरी भाग उठा हुआ होता हैं  पर यहाँ  सकी की जगह एक गहरा गड्डा बना हुआ था और पास में ही स्फटिक पत्थर (एक प्रकार का पारदर्शी पत्थर ) की दो  प्राचीन मूर्तिया भी थी । वहां के पुजारी ने बताया की यह शिव लिंग प्राकर्तिक रूप से ऐसा ही हैं, और यहाँ शिव लिंग के  गड्डे अन्दर भगवान् शिवजी के पैर के अगुठे  का आकार निशान बना हुआ हैं और इसी अगुठे  ने पूरे माउन्ट आबू के पहाड़ को थाम रखा हैं जिस दिन यह अगुठे के निशान गायब हो जायेगा यह माउन्ट आबू पहाड़ ख़त्म हो जायेगा ।  हम लोगो ने भगवान् भोले नाथ के शिव लिंग के दर्शन किये और कुछ देर मंदिर के आस पास बिताने के बाद हम लोग अपने अगले पड़ाव दिलवाड़ा जैन मंदिर की और चल दिये । 

पीतल से बनी नंदी जी की बड़ी मूर्ति   (~ गूगल चित्र )
दिलवाड़ा जैन मंदिर  

दिलवाड़ा जैन मंदिर शहर से लगभग ४ किलोमीटर दूर स्थित हैं । यह जैन मंदिरों में से सबसे सुन्दर मंदिर हैं ।  मंदिर के खुलने का समय दोपहर १२:०० बजे से शाम ५:०० बजे तक हैं ।  मंदिर में प्रवेश करने से पहले हम लोगो ने अपना मोबाइल, कैमरा क्लोक रूम जमा कर दिया क्योकि यहाँ भी मोबाइल व कैमरे के साथ प्रवेश वर्जित था और जूते-चप्पल भी वही उतार दिए।  यहाँ  गेट पर  २० से २५ लोगो का समूह में इकठ्ठा करके और मंदिर के एक गाईड के साथ मंदिर के अन्दर प्रवेश कराया जाता हैं । 

दिलवाड़ा मंदिर कारीगरों की मेहनत, लगन, कुशलता व दिल से बनाया गया एक बेमिशाल व् बेजोड़ कलाकृति से सुज्जजित मंदिर हैं जो की अपने आप में एक अजूबा हैं । दिलवाड़ा जैन मंदिर परिसर मे पांच जैन मंदिर समूह मे बने हुए हैं। मंदिर परिसर साफ़ सुधरा और शांति  से परिपूर्ण था । बहुत ही आकर्षक ढ़ग से तराशे गए मंदिरों का निर्माण लगभग  11 वीं और 13 वीं सदी में हुआ था। मंदिर परिसर मे  प्रथम जैन तीर्थकर का विमल विसाही मंदिर सबसे प्राचीनतम है। इसका निर्माण सन् 1031 में विमल विसाही नामक एक व्यापारी ने किया था, जो उस समय के गुजरात के शासकों का प्रतिनिधि था। यह मंदिर संगमरमर वास्तुकला के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। हर मंदिर मे संगमरमर से उकेरी गयी कलाक्रतिया अपने आप मे आदित्य, अद्भुत व्  एक दूसरे से भिन्न हैं ।

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