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Thursday, April 5, 2012

Agra to Manali Via Noida/Delhi by Car (एक सुहाना सफ़र मनाली का....1)

Written By Ritesh Gupta

सभी घुमक्कड़ साथियों को मेरा नमस्कार ! आज मैं अपनी पिछ्ली श्रृंखला माँअम्बाजी, माउन्टआबू और उदयपुर के बाद एक और नए यात्रा लेख की नई कड़ी शुरू करने जा रहा हूँ । यह नई श्रृंखला हैं → भारत के उत्तर में स्थित हिमाचल प्रदेश के  मनाली, रोहतांग और मणिकरण के सफ़र की । यह यात्रा अपने परिवार सहित जून, 2010 में आगरा से दिल्ली तक बस से तथा दिल्ली से मनाली, रोहतांग और मणिकरण होते हुए और वापिस दिल्ली तक कार के माध्यम से की थी । अब हम चलते हैं,अपने मनाली की यात्रा वृतांत की ओर ।

गर्मी का मौसम था और जून का महीना चल रहा था, इस समय मैदानी इलाके में गर्मीया अपने पूरे चरम होती हैं । उस समय आगरा शहर का तापमान लगभग 40 से 44 के बीच झूल रहा था । दिन में तेज धूप की वजह सड़कों पर लगभग सन्नाटा ही पसरा रहता था और आकाश में किसी भी प्रकार बादलों का कोई भी आवागमन भी नहीं हो रहा था । इधर हमारी रोज की वही एक सी व्यस्त दिनचर्या से मन उब रहा था और ह्रदय में एक अजीब कुलबुलाहट उठ रही थी, कि सारे काम काज छोड़कर किसी ठन्डे जगह (पर्वतीय स्थल) में कुछ दिनों के लिए घूमने चला जाऊ । मन में ये बात आते ही, मैंने किसी पर्वतीय स्थल पर चलने का मन बनाया और नोयडा में रहने वाले अपने छोटे भाई को फोन किया और उसे अपने साथ चलने के लिए कहा, तो मेरी यह बात सुनकर  वह तुरंत चलने को तैयार हो गया । अब समस्या उठी कि “ कौन सी जगह जाया जाये ?”  क्योकि अधिकतर उत्तर भारत की मुख्य पहाड़ी स्थल (Hill Station) हमारे घूमे हुए थे,  अकेले  “कुल्लू - मनाली ” को छोड़कर । हम लोगो कि सहमति “कुल्लू - मनाली” चलने के लिए हो गयी । चूँकि  इस सफ़र की शुरुआत नोयडा से होनी थी तो इसके लिए मुझे सबसे पहले अपने परिवार सहित नोयडा पहुचना था, उससे से आगे की  यात्रा दिल्ली या नोयडा से शुरू करनी थी । हमारे जाने का स्थान पक्का हो जाने के बाद अब हमारे सामने एक सवाल था कि यहाँ से मनाली कैसे या किस प्रकार जाया जाये ? उसके लिए भी हमारे सामने जाने के कुछ निम्न तरीके/उपाय थे  ।

Tajmahal (click on for large pic)
Wah Taj ! अब हमने अपनी यात्रा आगरा से शुरू की हैं, तो भारत की शान आगरा के "ताजमहल " का एक फोटो तो होना चाहिये |

Sunday, February 26, 2012

Around Udaipur- हल्दीघाटी,श्री नाथद्वारा,एकलिंगजी (Haldighati,Nathdwara & Eklingji)_Part-4

पिछले लेख से आगे। संग्रहालय घूमते समय हम लोग चलचित्र (Light & Sound Show Hall)वाले हॉल में जा पहुचे और यहाँ पर हमारे बस के “फतेहसागर लेक” ग्रुप के सभी लोगो की इकट्ठा कर दिया गया था। हॉल में मेवाड़ और हल्दीघाटी का इतिहास, महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल आदि के बारे में चलचित्र (Light & Sound Show) के माध्यम से प्रदर्षित किया गया। इस चलचित्र के प्रदर्शन समय लगभग १० मिनिट का था और इस हॉल में बैठने के लिए लकड़ी के बेंच की व्यवस्था भी थी। हॉल से निकलने के बाद संग्रहालय के और कई कमरे हमने देखे, सभी कमरे मेवाड़ और राजस्थान की एतिहासिक वस्तुए से संगृहीत थे। संग्रहालय के कमरे के बाद एक खुले स्थान पर गुलाब के फूलो से गुलाबजल बनाने की विधि का प्रदर्शन हो रहा था, साथ में ही एक आयुर्वेद उत्पाद दुकान थी, जहाँ से हमने गुलाबजल और गुलुकंद ख़रीदा। इस संग्रहालय में छोटा किन्तु सुन्दर एक कृत्रिम सरोवर था और उसमे में गिरता हुआ एक पानी का झरना मन को और भी लुभा रहा था। सरोवर के किनारे और कुछ सरोवर के पानी में तरह-तरह की मूर्तिकला माध्यम से सुन्दर द्रश्य का प्रदर्शन किया गया था। इस छोटे से सरोवर में पैडलबोट (पैर की सहायता से चलने वाली नौकाए)की भी व्यवस्था थी। 

आप भी नीचे दिए कुछ और सुन्दर चित्रों के माध्यम से संग्रहालय का अवलोकन कर सकते हैं:

संग्रहालय के अन्दर एक सरोवर पर बना पुल और पीछे बहता झरना।

संग्रहालय के अन्दर सरोवर पर  कालिया नाग के ऊपर नाचते भगवान श्री कृष्ण का एक द्रश्य

Tuesday, February 14, 2012

UDAIPUR: घसियार(Old Tample Nathdwara), ऐतिहासिक भूमि-"हल्दीघाटी".Part-3


UDAIPUR, दिनांक ३० जून २०११ और दिन गुरुवार था और ये हमारे सफ़र का चौथा और अंतिम दिन था। आज हमें जहाँ घूमने जाना हैं, उसका कार्यक्रम हम कल ही बना चुके थे और एक बस में टिकिट भी आरक्षित भी करवा दी थी। लगभग सुबह ६ बजे के आसपास हम लोग नींद से उठ गए और कुछ समय पश्चात, अपने सुबह के जरुरी काम निपटाकर घूमने जाने के लिए तैयार हो गए। कमरे की खिड़की से उदय पोल, केंद्रीय बस अड्डा और पीछे जाती हुई रेलवे लाइन का सुन्दर नज़ारा दिख आ रहा था।
उदय पोल, केंद्रीय बस अड्डा और पीछे जाती हुई रेलवे लाइन का सुन्दर नज़ारा।
अपने आगे के सफ़र पर जाने से पहले हमने अपना सारा सामान इकठ्ठा किया और अपने बैगो में पैक कर दिया, क्योकि हमने इस होटल में कमरा एक दिन के लिए ही किराये पर लिया था और अब हमें इसे सुबह १० बजे से पहले खाली भी करना था।

रात को उदयपुर में हमारा रुकने का कोई कार्यक्रम नहीं था, क्योकि आज रात को हमें आगरा के लिए वापिस जाना था और हमारा उदयपुर-ग्वालियर सुपरफास्ट एक्सप्रेस रेल (रेलगाड़ी संख्या १२९६६ और उदयपुर से गाड़ी चलने का समय रात १० बजकर २० मिनिट पर) से टिकिटो का अग्रिम आरक्षण भी था।

होटल की छत से दीखता सिटी पैलेस ।

Wednesday, January 18, 2012

Tour of the Udaipur City (फ़तेहसागर झील,नेहरू पार्क ,सहेलियों की बाड़ी,सुखाडिया सर्किल)--Part-2

नमस्कार  दोस्तों !
शाम के लगभग साढ़े पांच बज रहे थे, और इस समय हम लोग अरावली वाटिका में ही थे अरावली वाटिका कुछ समय बिताने या मनोरंजन करने की अच्छी जगह हैं, क्योकि जब तक हम यहाँ पर थे, बहुत ही कम लोग ही यहाँ पर इसे देखने पहुचे हुए थे, और इस कारण कोई हल्ला-गुल्ला या फिर अधिक शोरगुल नहीं था, वाटिका के सड़क किनारे होने के कारण थोड़ी-बहुत सड़क पर चलने वाले वाहनों के आने जाने की आवाज आ रही थी।    
 
अरावली वाटिका में स्लेटी पत्थर के टुकडो से बना हाथी
अरावली वाटिका एक पुल और पुल के नीचे भी एक पार्क हैं
कुछ समय अरावली वाटिका की हरियाली और शांत माहौल में बिताने के बाद हम लोग ऑटोरिक्शा से फ़तेहसागर झील की ओर चल दिए लगभग १५  मिनिट में हम लोग फ़तेह सागर झील के पास मोती मगरी नाम के स्थान पर पहुच जाते हैं।  

"महाराणा प्रताप स्मारक" मोती मगरी (Pearl Hill ) पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ एक स्मारक उद्यान हैं,अब  यहाँ पर महाराणा प्रताप की उनके वफादार घोड़े "चेतक" पर बैठे हुए कांसे की एक बड़ी मूर्ति लगी हुई हैं,और चारो ओर हरा भरा व सुन्दर उद्यान (ROCK  GARDEN ) विकसित हैंपहले इस पहाड़ी की चोटी मोती महल हुआ करता था, अब उसके अवशेष (खंडर) स्मारक पास में ही स्थित हैं  
फ़तेह सागर झील किनारे सड़क से दिखता "महाराणा प्रताप स्मारक", मोती मगरी (Pearl Hill )
हम लोगो को "महाराणा प्रताप स्मारक" सड़क से ही नज़र आ रहा था, पर "महाराणा प्रताप स्मारक" को देखने के लिए हम लोग जा नहीं गए सोचा की अगले बार जायेंगे और झील किनारे सड़क से ही उस सुन्दर स्मारक की एक सुन्दर सी फोटो अपने कैमरे में कैद कर ली

उदयपुर में पिछोला झील के बाद फ़तेहसागर झील उदयपुर की दूसरी बड़ी और प्रसिद्ध झील हैं, जो की पिछोला झील के उत्तर में और मोती मगरी नाम की पहाड़ी के प्रवेश द्वार के पास स्थित हैं। यह झील सवा दो किलोमीटर लम्बी और सवा किलोमीटर चौड़ी हैं फ़तेहसागर झील का पानी नीला हैं और इसके पानी को एक बांध बनाकर रोका गया हैं, बरसातो में झील में पानी अधिक हो जाने पर इसी बांध के जरिये अधिक पानी बहार निकाल दिया जाता हैं फ़तेहसागर झील में में तीन द्वीप हैं- सबसे बड़े द्वीप पर नेहरु पार्क हैं, जो सुंदर उद्यान, चिड़ियाघर और एक रेस्तरां (जो की पुल के जरिये नेहरु पार्क से जुड़ा हुआ हैं) के लिए जाना जाता हैं । इस नेहरु पार्क तक जाने के लिए मोती मगरी के पास से उदयपुर सरकार द्वारा संचालित नाव, पानी के स्कूटर, मोटर बोट आदि की व्यवस्था हैं, दूसरे द्वीप पर एक उदयपुर की सरकार के द्वारा लगाया गया जेट फव्वारा हैं और तीसरे द्वीप पर उदयपुर सौर वेधशाला (Udaipur Solar Observatory) हैं।   
 
फ़तेह सागर झील का द्रश्य बड़ा ही मनोरम और शाम की लालिमा लिए हुए था  पानी से झील लबालब भरी हुई थी और तेज हवा चलने के कारण झील का पानी काफी हलचल थी  झील का पानी गहरा नीला था, और साथ में ही दूर कुछ छोटी-छोटी पहाड़िया भी नज़र आ रही थी। 
 
झील से दिखता मोती मगरी घाट और मोटर बोट झील के बीच में बने द्वीप पर उदयपुर सौर वेधशाला भी नज़र रहा हैं
झील के बीच में द्वीप पर बना नेहरु पार्क किनारे से बड़ा ही आकर्षक नज़र आ रहा था, इसलिए वहा पर जाने के इच्छा भी करने लगी थी, सो नेहरु पार्क तक की यात्रा  के लिए मोती मगरी घाट पर स्थित सरकारी बोट स्टैंड से टिकिट ख़रीदे, एक टिकिट, मोटरबोट से नेहरू पार्क तक जाने का और वहा से वापिस आने तक मान्य थी, लौटने के समय का कोई बंधन नहीं थाटिकिट लेने के पश्चात् हम लोग अपनी बारी का इन्तजार करने लगे कुछ देर में ही मोटर बोट आ गयी, हम सभी लोग बारी-बारी से उसमे सवार हो गए, यहाँ के मोटर बोट के नियम के अनुसार बोट में पहले से रखी गयी, लाइफ जेकेट पहनना बहुत जरुरी था सवारियों से भर जाने के बाद मोटर बोट नेहरू पार्क के लिए रवाना हो गयी, कुछ ही देर की यात्रा के बाद हम लोक नेहरु पार्क के घाट पर पहुच जाते हैं मोटर बोट से झील में यात्रा करने का आनंद कुछ अलग ही था। अन्दर से नेहरू पार्क में पेड़ पौधे, फब्बारा, पानी का एक छोटा सा तालाब, छोटे-छोटे घास के पार्क, टहलने के लिए पगडण्डी, क्यारियो में लगे सुन्दर फूल आदि सब कुछ व्यवस्थित तरीके से बना हुआ था।  नीचे दिए गए चित्रों के माध्यम से आप लोग भी नेहरू पार्क और नेहरु पार्क से दिखने वाले द्रश्य का अवलोकन कर सकते हो 

नेहरु पार्क के अन्दर से काफी अच्छी तरह व्यवस्थित और सुन्दर  हैं यहाँ पर फब्बारे संचालित होते हैं, किन्तु  हमें ऐसा नहीं ला
नेहरु पार्क के अन्दर पुल से जुड़ा नेहरू पार्क केफेटेरिया ( रेस्तरा ), जहा हम लोगो ने कोंफी और चाय का लुफ्त उठाया था  
नेहरु पार्क से दिखता फतेहसागर झील का विहंगम और मनोरम सूर्यास्त का सुन्दर  द्रश्य
नेहरु पार्क से दिखता  झील का एक विहगम द्रश्य । सामने दूसरे द्वीप पर संचालित जेट फब्बारा भी नज़र आ रहा हैं
मोती मगरी के पास झील के किनारे बना घाट, यही से बोट नेहरु पार्क तक जाती हैं। सामने डूबता हुआ सूर्य भी दिखाई दे रहा हैं
नेहरू पार्क में टहलते हुए हम लोगो अब काफी समय व्यतीत हो गया था। संध्या भी हो चली थी, सामने झील में मनोरम सूर्यास्त भी नज़र आ रहा था शाम के लगभग सात बजने वाले थे वापिस जाने के लिए करीब दस मिनिट मोटर बोट का इंतजार करना पड़ा वापिस आने पर हमारे ऑटो रिक्शा वाले घाट के पास ही सड़क के किनारे खड़े मिल गए अब हम लोगो को सहेलियों की बाड़ी पहुचना था लगभग सवा सात के आसपास हम लोग सहेलियों की बाड़ी पहुच गए 
 
सहेलियों की बाड़ी भी उदयपुर के प्रसिद्ध स्थानों में से एक हैं यह एक शाही वाटिका हैं, जो राजपरिवार की महिलाओ के मनोरंजन एवं उनके आराम के लिए बनवाई गयी एक शानदार वाटिका हैं। यह वाटिका इस ढंग से बनवाई गयी हैं की गर्मियों में यहाँ के वातावरण में भी शीतलता बनी रहती हैंशीतलता बनी रहनी का मुख्य  कारण यहाँ पर सुन्दर बगीचों के बीच में बनी छत्रियो के किनारे पानी के फब्बारे लगे हुए हैंपानी के फब्बारे के चलते रहने के कारण यहाँ का माहौल बारिश के मौसम के जैसा हो जाता हैं, और यहाँ की हवा पानी की फुहारों से नम होकर शीतलता का आभास कराती हैंफब्बारे वाला मुख्य स्थान चारो ओर से ऊची दीवार से घिरा हुआ हैं ओर अन्दर जाने के लिए एक दरवाज़ा बना हुआ हैं, कई जगह संगमरमर की पशु-पक्षियों की मूर्तियां भी बनी हैं। यहाँ पहुच कर हम लोगो ने भी वैसे अनुभव किया क्योकि उस समय यहाँ पर फब्बारे चल रहे थे और बगीचा भी खूब सुन्दर था।  
सहेलियों की बाड़ी और उसमे संचालित पानी के  फब्बारे
सहेलियों की बाड़ी घूमने के बाद हम लोग सुखाडिया गोल चक्कर (Sukhadiya Circle) पहुँच गए जो सहेलियों की बाड़ी के सामने से गए हुए रास्ते से कुछ दूरी पर था 

सुखाडिया गोल चक्कर चौराहा के बीच में बना एक बड़ा गोल चक्कर हैं, जिसके बीच में एक छोटा सा सरोवर, सरोवर के बीच में एक फब्बारा और उस सरोवर के किनारे सुन्दर सा बगीचा और घास के पार्क बने हुए हैं। अन्दर प्रवेश करने के लिए चारो और से प्रवेश द्वार भी हैं।
 
सुखाडिया गोल चक्कर में सुन्दर फब्बारा और सरोवर में चलती तरह तरह की पैदल बोट
जब हम पहुचे तो सुखाडिया गोल चक्कर में काफी भीड़-भाड़ थी। पार्क में लोग अपने हिसाब से मनोरंजन कर रहे थेसुखाडिया गोल चक्कर में स्थित सरोवर में पैदल बोट चलाने की व्यवस्था थी और पार्क कठपुतली का आयोजन हो रहा था। रौशनी की भरपूर व्यवस्था थी और शाम के अँधेरे में सुखाडिया सर्किल बहुत अच्छा लग रहा था सुखाडिया सर्किल घूमने और थोड़ी देर पार्क में आराम करने के बाद हम लोग ऑटोरिक्शा से वहा से चल दिए कुछ देर चलने के बाद ऑटो रिक्शा ने हमें एक बड़ी से दुकान (राजस्थानी सामान की दुकान) के सामने ले जाकर उतार दिया, हमने पूछा तो उसने बताया की "यह एम्पोरियम घूमने के सबसे अंतिम स्थान में आता हैं, आप लोग यहाँ घूमिये जो पसंद आये उसे खरीद लीजिये" थोड़ी देर हम लोगो ने दुकान में घूमे, कुछ सामान को देखा, उनकी  कीमत पूछी तो वो सामान काफी  महंगा था, पर हमने वहा से कुछ नहीं  ख़रीदा और वापिस ऑटो में आकर बैठ गए और ऑटो वाले से कहाँ "हमें कुछ नहीं खरीदना, समय भी अब काफी हो चुका, एक काम करो आप अब हमें हमारे होटल पर छोड़ दो।" मैंने मन में सोचा कि हो सकता हैं, ऑटो वाले का इस दुकानदार से कुछ दलाली तय हो तभी तो वो हमको वहां पर लाया था

कुछ देर में ही हम लोग होटल पहुच गए वहां पहुच कर हमने ऑटो वाले का हिसाब किया और होटल कमरे में पहुच गए। आज का पूरा दिन हमारा थकावट वाला रहा, क्योकि सुबह माउन्ट आबू से उदयपुर का लम्बा सफ़र बस से तय किया और उसके बाद ऑटो उदयपुर के दर्शनीय स्थलों का अवलोकन किया। थके होने के कारण खाना भी हमने अपने कमरे में ही माँगा लिया था। खाना खाकर हमने कल के लिए योजना बनाई, क्योकि हम पर अभी कल का एक दिन और बाकि था, कुछ स्थान जैसे मानसून पैलेस, उदय सागर, सिटी पैलेस, 

जगनिवास इत्यादि को छोड़कर अधिकतर उदयपुर शहर हमने घूम लिया था, जब हम माउन्ट आबू से चले थे तभी से हमारी इच्छा भगवान श्रीनाथ जी (नाथद्वारा) के दर्शन करने व हल्दीघाटी को देखने की थी, सो अगले दिन का कार्यक्रम हमने नाथद्वारा और हल्दीघाटी जाने का बनाया। हमने नीचे होटल के काउंटर पर जाकर होटल के मैनेज़र को अपना कल का कार्यक्रम बताया तो उसने एक टूरिस्ट बस में कल के लिए सीटे आरक्षित करवा दी। एक टिकिट का मूल्य १४० रूपये था और बस का समय सुबह ८ बजे का था। 

अब इस लेख को अब यही समाप्त करते हैं, और मिलते हैं अगले लेख में उदयपुर के आसपास के कुछ नए स्थानों के साथ। धन्यवाद !


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