Written By→ Ritesh Gupta
बस हमे एक चिंता थी कही कार खराबी के कारण बंद न हो जाए, यदि बंद हो गयी तो हमे बड़ी परेशानी का समाना करना पड़ सकता था । खैर यह सोचकर की जहाँ भी गैराज मिलेगा इसे दिखा देगे, इस आशा के साथ हम लोग चलते रहे । कुछ समय बीतने के पश्चात रास्ता कुछ समतल और कम चढ़ाई वाला आ गया, इसी तरह गाड़ी के परेशानी झुझते और साथ ही साथ रास्ते के नजारे का आनंद लेते हुए 4:20 बजे हम लोग सोमेश्वर नाम की एक जगह पर पहुँच गए । सोमेश्वर एक छोटा पहाड़ी क़स्बा हैं और यहाँ से कौसानी की दूरी करीब 12 या 13 किमी० के आसपास थी । यहाँ से कौसानी पहाड़ की काफी ऊँचाई पर स्थित है सो रास्ता भी काफी चढ़ाई वाला हैं । कस्बे के बाजार में हमे एक स्थानीय व्यक्ति का एक गैराज नजर आया, उस को गाड़ी की खराबी के बारे सारा मामला बताया । उस ने गाड़ी के बोनट को खोल कर देखा भी, पर वो मिस्त्री उस कार की कमी को नहीं पकड़ पाया । उसने कहा कि नए डिजायन का इंजन है और मेरी समझ से बाहर हैं, आप इसे मारुती के सर्विस सेंटर पर ही दिखाओ ।
अपने सारा सामान कमरे में पहुचाने के बाद कुछ समय तक हम लोगो ने तरोताजा होने में लगा दिए । तरोताजा होने के बाद हम लोग कमरे से बाहर निकल आश्रम परिसर में घूमने निकल आये । पहाड़ की ऊंचाई पर बसा अनासक्ति आश्रम का मुख्य भवन संरचना हमे काफी सुन्दर लगी, भवन की छत लाल रंग की ढलवा आकार की हैं । भवन के सामने गांधी जी एक प्रतिमा लगी हुई हैं, उस प्रतिमा के पीछे के भवन में एक प्राथर्ना कक्ष, पुस्तकालय और एक ऑफिस हैं । प्राथर्ना कक्ष में गांधी से के जीवन से सम्बंधित चित्र, आलेख और वस्तुएं प्रदर्शित की हुई हैं । अनासक्ति आश्रम मुख्तय श्री महात्मा गाँधी जी को समर्पित आश्रम हैं । सन 1929 गाँधी जी जब अपने भारत दौरे निकले थे तब वह अपनी थकान मिटाने के दो दिन के लिए कौसानी भी आये थे । कौसानी घाटी से दिखने वाला हिमांछ्दित पर्वतमाला और प्रात: वेला में इन पड़ने वाले सूर्य के स्वर्णमयी किरणों ने उनका मन मोह लिया था । गाँधी जी यहाँ पर चौदह दिन रहे और गीता पर आधारित पुस्तक “अनासक्ति योग” को प्रस्तावित किया । गाँधी जी की कृति “अनासक्ति योग” के आधार पर ही इस आश्रम की स्थापना हुई और इस आश्रम का नाम अनासक्ति आश्रम पड़ा । आश्रम के बारे में और वहाँ के क्रिया कलाप, नियम कानून आदि की जानकारी आपको नीचे लगाए गए चित्रों के माध्यम से मिल जायेगी ।
अपने पिछले लेख (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..8) में मैंने प्रसिद्ध पर्वतीय स्थल रानीखेत और वहाँ के विभिन्न स्थानों का उल्लेख किया था । इस कुमाऊँ श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए अब रानीखेत से निकलकर चलते हैं, उत्तराखंड प्रदेश के अंतर्गत कुमाऊँ का स्वर्ग कहा जाने वाला छोटा पर प्रसिद्ध पर्वतीय नगर “ कौसानी " की यात्रा पर ।
लगभग समय 3:00 बजे के आसपास हम लोग रानीखेत के गोल्फ कोर्स वापिस चल दिए । कुछ किलोमीटर बाद रानीखेत शहर से काफी पहले कार चालाक ने कार को एक दाए तरफ के रास्ते “रानीखेत-द्वारहाट-कौसानी” मार्ग पर ले लिया । इस मोड़ से सोमेश्वर 43किमी० और कौसानी 55किमी० की दूरी पर था । कुछ देर चलने के बाद पहाड़ की चढ़ाई पर चढ़ते समय हमारी टैक्सी कार (मारुती अल्टो) में कुछ खराबी आ गयी । ढलान पर बिल्कुल सही चल रही थी, पर चढ़ाई पर पूरे एक्सीलेटर दबाने के बाद भी मुश्किल से धीरे-धीरे चल रही थी और झटके ले रही थी जैसे उसका करंट आ जा रहा हो । कार चालक ने एक स्थान पर रोककर भी देखा भी पर उसके लिए नए माडल का इंजन होने के कारण उसे कुछ समझ में न आया । आखिर क्या करते, आसपास कोई कार का गैराज भी नहीं था तो मज़बूरीवश हमारा कार चालक उसी अवस्था में गाड़ी को खींचता रहा जिससे कार का एवरेज भी कम हो रहा था । रास्ते में जब भी चढ़ाई आती तभी कार की में परेशानी शुरू जाती थी, बाकी ढलान और समतल रास्ते पर कार बराबर दौड़ रही थी ।
Ranikhet-Dwarhat-Kuasani Road (रानीखेत से कौसानी की दूरी लगभग 55किमी० हैं) |
बस हमे एक चिंता थी कही कार खराबी के कारण बंद न हो जाए, यदि बंद हो गयी तो हमे बड़ी परेशानी का समाना करना पड़ सकता था । खैर यह सोचकर की जहाँ भी गैराज मिलेगा इसे दिखा देगे, इस आशा के साथ हम लोग चलते रहे । कुछ समय बीतने के पश्चात रास्ता कुछ समतल और कम चढ़ाई वाला आ गया, इसी तरह गाड़ी के परेशानी झुझते और साथ ही साथ रास्ते के नजारे का आनंद लेते हुए 4:20 बजे हम लोग सोमेश्वर नाम की एक जगह पर पहुँच गए । सोमेश्वर एक छोटा पहाड़ी क़स्बा हैं और यहाँ से कौसानी की दूरी करीब 12 या 13 किमी० के आसपास थी । यहाँ से कौसानी पहाड़ की काफी ऊँचाई पर स्थित है सो रास्ता भी काफी चढ़ाई वाला हैं । कस्बे के बाजार में हमे एक स्थानीय व्यक्ति का एक गैराज नजर आया, उस को गाड़ी की खराबी के बारे सारा मामला बताया । उस ने गाड़ी के बोनट को खोल कर देखा भी, पर वो मिस्त्री उस कार की कमी को नहीं पकड़ पाया । उसने कहा कि नए डिजायन का इंजन है और मेरी समझ से बाहर हैं, आप इसे मारुती के सर्विस सेंटर पर ही दिखाओ ।
अब एक समस्या कि इसका सर्विस सेंटर कहाँ ढूंढे, खैर हमने कार की उसी अवस्था में अपनी यात्रा को जारी रखा । कुछ देर बाद ही कौसानी के पहाड़ों की जबरदस्त चढ़ाई शुरू हो गयी और हम लोग भी धीरे-धीरे पहाड़ों के नजारों का आनंद लेते हुए चलते रहे । बीच-बीच में मोबाइल का नेट खोलकर सर्विस-सेंटर को भी ढूढने का प्रयास किया । तभी एक सर्विस सेंटर का पता हमे नेट पर मिल गया, यह सर्विस-सेंटर कौसानी के सबसे पास का शहर बागेश्वर में स्थित था और हमने सोचा कि अब तो इसे बागेश्वर के सर्विस-सेंटर में ही दिखायेंगे । खैर कुछ समय के बाद हम लोगो ने कौसानी में प्रवेश कर लिया था । कौसानी के होटल और मुख्य बाजार से गुजरते समय हमने चालक से पूछा कि एक अच्छे और सस्ते से होटल पर रोक दो तो उसने कहा कि मैं आपके यहाँ के अनाशक्ति आश्रम ले चलता हूँ और वहाँ पर रुकने की व्यवस्था भी हैं । कार चालक ने मुख्य बाजार कई सारे घुमावदार रास्ते से होते हुए, हमे कौसानी के प्रसिद्ध अनासक्ति आश्रम पर पंहुचा दिया ।
कौसानी उतराखंड के बागेश्वर जिले के अंतर्गत एक सबसे लोकप्रिय लघु पर्वतीय स्थल हैं । समुद्रतल से कौसानी की ऊँचाई लगभग 1715 से लेकर 1890 मीटर तक है और यह पिंगनाथ नाम की चोटी पर बसा हैं । कौसानी के चारों तरफ प्राकृतिक सुंदरता बिखरी पड़ी हैं । पाइन वृक्षों के घने जंगल, ट्रेकिंग, शांत व स्वच्छ वातावरण,घाटी में चाय के बगान, दूर पहाडो के बीच उगते सूर्य के सूर्यादय नजारा और सबसे महत्वपूर्ण यहाँ से बर्फ से ढके हिमालय के पर्वतो की प्रमुख चोटिया जैसे चौखम्बा, नंद्घुटी, त्रिशूल, नंदादेवी, नंदाकोट, पंचचुली आदि का खूबसूरत और शानदार नजारा हमे सपनो की दुनिया में ले जाने के लिए काफी हैं । सूर्योदय के समय जब सूर्य की पहली किरण इन पर्वतो पर जब पड़ती हैं, तब नजारा वाकई में बड़ा ही शानदार दिखता हैं और मुँह निकल पड़ता हैं कि यदि स्वर्ग कही हैं वो यही है, यही हैं । खैर बादलों और कोहरे के कारण हिमालय का ऐसा नजारा हमे अपनी इस यात्रा में देखने को तो नहीं मिला, पर ऐसा नजारा हम अपनी यहाँ की पिछली यात्रा में देख चुका हूँ । कौसानी पर्वतीय नगर काफी व्यवस्थित है, यहाँ पर ठहरने के लिए सभी श्रेणी के होटल और धर्मशालाये की काफी अच्छी व्यवस्था हैं । एक छोटा सा बाजार जहाँ पर कई खाने-पीने के अच्छे रेस्तरा और जरुरत के समान की अच्छी दुकाने हैं । फिर भी यह जगह शहरी आपाधापी के विपरीत शांत और लगभग अपनी मूल अवस्था में ही है । कुल मिलाकर यहाँ के शांत वातावरण में कुछ समय बिताया जा सकता हैं । कौसानी लगभग नैनीताल से 120किमी०, काठगोदाम से 132किमी०,बागेश्वर से 38किमी० और अल्मोड़ा से 53किमी० दूर हैं ।
मैंने कही पढ़ा था कि कौसानी को भारत का स्विट्जरलैंड कहते हैं, पर भई मैंने तो स्विट्जरलैंड नहीं देखा तो इसकी तुलना वहाँ से क्यों करू । हाँ ! पर कौसानी वास्तव में वास्तविक प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण हैं और यहाँ की प्राकृतिक छटा किसी को भी अपना दीवाना बनाने के लिए समर्थ हैं । कौसानी हमारे हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत जी जन्म स्थली हैं । जिस घर में उन्होंने यहाँ पर अपना बचपन बिताया था, उस घर को उनकी याद में एक संग्रहालय और पुस्तकालय में बदल दिया गया हैं जिसे सुमित्रानंदन पंत वीथिका के नाम से जाना जाता हैं । यह संग्रहालय मैं अपनी पिछली कौसानी यात्रा में देख चुका हूँ ।
कार को आश्रम की पार्किंग में लगाने के हम लोग आश्रम में जाकर आज रात रुकने के लिए कमरे के बारे में वहाँ पर काम कर रहे एक कार्यकर्ता से पूछा । उसने हमे आश्रम के विश्राम गृह के अंदर कुछ कमरे दिखाए । आश्रम के कमरे कुछ खास नहीं थे पर रुकने के लिए ठीक-ठाक थे । हमने उससे एक कमरे के किराए पूछा तो उसने बताया हम लोग कमरे का किराया नहीं लेते हैं । कमरे खाली करते समय आप की जो इच्छा हो दान के रूप में ऑफिस में रसीद कटाकर जमा कर देना । हमने पूछा फिर भी हमें एक कमरे का न्यूनतम कितना देना होगा तो उसने हमे प्रति कमरे न्यूनतम खर्चा बता दिया और साथ-साथ यह भी बताया की हमारी रसोई भी हैं, तो वहाँ प्रति व्यक्ति खाने और सुबह के नाश्ते के खर्चा अलग से देना होगा । उसका इतना कहने के बाद हमने वहाँ पर दो कमरे पसंद कर लिए और ऑफिस में जाकर रजिस्टर कर दिए । वहाँ के कर्ताधर्ता (प्रबंधक) ने हमसे कहा कि आप को शाम को सात बजे के प्राथर्ना सभा में जरुर शामिल होइए । हमने कहा ठीक हैं शाम को सात बजे प्राथर्ना सभा में जरुर शामिल होने की कोशिश करेंगे ।
Kausani→ A Gandhi Statue at Anaskti Ashram |
अपने सारा सामान कमरे में पहुचाने के बाद कुछ समय तक हम लोगो ने तरोताजा होने में लगा दिए । तरोताजा होने के बाद हम लोग कमरे से बाहर निकल आश्रम परिसर में घूमने निकल आये । पहाड़ की ऊंचाई पर बसा अनासक्ति आश्रम का मुख्य भवन संरचना हमे काफी सुन्दर लगी, भवन की छत लाल रंग की ढलवा आकार की हैं । भवन के सामने गांधी जी एक प्रतिमा लगी हुई हैं, उस प्रतिमा के पीछे के भवन में एक प्राथर्ना कक्ष, पुस्तकालय और एक ऑफिस हैं । प्राथर्ना कक्ष में गांधी से के जीवन से सम्बंधित चित्र, आलेख और वस्तुएं प्रदर्शित की हुई हैं । अनासक्ति आश्रम मुख्तय श्री महात्मा गाँधी जी को समर्पित आश्रम हैं । सन 1929 गाँधी जी जब अपने भारत दौरे निकले थे तब वह अपनी थकान मिटाने के दो दिन के लिए कौसानी भी आये थे । कौसानी घाटी से दिखने वाला हिमांछ्दित पर्वतमाला और प्रात: वेला में इन पड़ने वाले सूर्य के स्वर्णमयी किरणों ने उनका मन मोह लिया था । गाँधी जी यहाँ पर चौदह दिन रहे और गीता पर आधारित पुस्तक “अनासक्ति योग” को प्रस्तावित किया । गाँधी जी की कृति “अनासक्ति योग” के आधार पर ही इस आश्रम की स्थापना हुई और इस आश्रम का नाम अनासक्ति आश्रम पड़ा । आश्रम के बारे में और वहाँ के क्रिया कलाप, नियम कानून आदि की जानकारी आपको नीचे लगाए गए चित्रों के माध्यम से मिल जायेगी ।
आसपास के प्राकृतिक सुषमा से मध्य आश्रम का वातावरण बड़ा ही शांत, सुरम्य और स्वच्छ था । आश्रम से दूर हिमालय की हिमांछ्दित पर्वतमाला बड़ा ही शानदार नजारा और सूर्योदय दिखाई देता हैं । यहाँ पर बैठने के लिए प्राथर्ना कक्ष के बाहर पत्थर के बेंच लगी हुई थी, यहाँ पर घंटो बैठकर घाटी और हिमांछ्दित पर्वतमाला को निहारा जा सकता हैं । कुछ देर हम लोग आश्रम परिसर से ही दूर धुंध में डूबी पर्वतमाला और घाटी का आनंद लेते रहे, धुंध के कारण हमे हिमालय की हिमांछ्दित पर्वतमाला के दर्शन नहीं हुए । उसके बाद हम आश्रम के प्राथर्ना कक्ष देखने चले गए । प्राथर्ना कक्ष के अंदर गाँधी जी के जीवनी से सम्बंधित चित्रों को प्रदर्शित किया गया था । प्राथर्ना कक्ष देखने बाद हम लोग आश्रम से बाहर आ गए ।
शाम के लगभग पांच बजे का समय हो रहा था, सफ़र के थकान के कारण बच्चो को भूंख भी लग रही थी । तभी ठीक आश्रम के बाहर पार्किंग में एक छोटी सी चाय की दूकान नजर आई और वहाँ पर मैगी बनते देख बच्चो की आंख में चमक आ गयी । फटाफट से वहाँ पहुँचकर दो प्लेट मैगी और चाय का आदेश दे दिया । दूकान पर चाय और मैगी एक छोटा बच्चा बना रहा था, उसके कुछ कपड़े फटे हुए थे पर बोलता बहुत था ।
हमने उससे पूछा, “यह दूकान तुम्हारी हैं क्या ?”
उसने जबाब दिया, “नहीं ! वो सेठ जी सामने कुर्सी पर बैठे हुए हैं ।”
हमने फिर पूछा, “पढ़ाई करते हो या फिर सारा दिन इसी दुकान पर नौकरी करते हो ।”
उसने बड़े बिंदास जबाब दिया, “हाँ ! पढ़ाई के लिए मेरे पास समय नहीं हैं, बाप नहीं हैं तो कमाने के लिए यह सब करना पड़ता हैं । कमाऊंगा नहीं तो घर पर खाना कैसे आएगा । लो जी आपकी मसाला मैगी तैयार हो गयी ”
उसकी यह बात सुनकर हमने सोचा की इतनी परेशानियों में भी यह बच्चा पढ़ने-लिखने की उम्र में कितनी खुशी से अपना कर्तव्य निभा रहा हैं और एक हमारे समाज में कैसे-कैसे लोग हैं जो जरा सी परेशानिया आते ही अपना गलत रास्ता चुन लेते ।
उसकी यह बात सुनकर हमने सोचा की इतनी परेशानियों में भी यह बच्चा पढ़ने-लिखने की उम्र में कितनी खुशी से अपना कर्तव्य निभा रहा हैं और एक हमारे समाज में कैसे-कैसे लोग हैं जो जरा सी परेशानिया आते ही अपना गलत रास्ता चुन लेते ।
हमने उससे कहा,”समय निकाल कर थोड़ा-बहुत पढ़ाई भी कर लिया कर । यह आगे तेरे बहुत काम आयेगा ।”
खैर कौसानी के ठन्डे मौसम कुर्सी-मेज पर बैठकर गर्म-गर्म मैगी और चाय का लुफ्त उठाने के बाद हम लोग आश्रम से बाहर की सड़क की तरफ चल दिए । सड़क पर आने के बाद नीचे बाजार (बाजार में वोही होटलो की भरमार, खाने पीने की दुकाने होगी और बाजार घूमने का मन भी नहीं था सो यही सोचकर इस तरफ नहीं गए) की तरफ जाने के बजाय हम लोग पहाड़ के ऊपर की तरफ के रास्ते पर चल दिए । सड़क के एक तरफ काफी अच्छे-अच्छे कई सारे होटल बने हुए थे । सड़क के दूसरी तरफ पाइन के घने पेड़ थे जहाँ काफी मात्रा में बंदरों की उपस्थिति विराजमान थी । कुछ देर चलते-चलते सड़क समाप्त हो गयी और एक बड़ा सा गेट और एक आगे जाने का कच्चा रास्ता जा रहा था । गेट के एक तरफ “कौसानी इको पार्क” और उसके आधारशिला रखे जाने के बारे में लिखा था । सूचनापट के अनुसार इस इको पार्क की आधारशिला कुछ दिनों (शायद 24-जून-2012 और हमारी मौजूद दिनांक 26-जून-2012) पहले ही की गयी थी । हम लोग भविष्य में निर्मित होने वाले पार्क के अंदर कुछ दूर तक भी गए, पर अभी यह पार्क अपने जगंली, प्राकृतिक परिवेश में मौजूद था । कुछ देर हम लोग पार्क के गेट के पास की पहाड़ियों पर चढ़े और पाइन के कुछ फल भी एकत्रित किये । वही पर पार्क के गेट पहले होटलों के सामने पहाड़ी पर एक ऊँचा वाच टावर भी बना हुआ था । उस वाच टावर पर चढ़ने के बाद दूर-दूर तक प्राकृतिक नजारे का अवलोक किया आसपास के कुछ फोटो भी खींचे ।
काफी देर यहाँ पर बिताने के बाद समय लगभग 7:15 बजे का हो गया था तो हमने कहा की चलो हम अनासक्ति आश्रम की प्राथर्ना सभा में भाग लेने चलते हैं । कुछ देर में ही हम लोग आश्रम पहुँच गए, इस समय प्राथर्ना कक्ष में काफी लोग मौजूद थे । गेट पर पहुचने के बाद वहाँ के प्रबंधक ने हमे अंदर आकार बैठने का इशारा किया । प्राथर्ना कक्ष में कई तरह की प्राथर्ना का दौर चला जैसे भगवान राम-कृष्ण, देश भक्ति, गाँधी से सम्बन्धित प्राथर्नाये हुई । कुछ लोगो ने अपने क्षेत्रिय भाषा में भी प्राथर्ना गायन किया इस बीच कक्ष में बाहर के काफी आगंतुक आते रहे । लगभग समय आठ बजे के आसपास प्राथर्ना सभा समाप्त हो गयी और सभी लोग अपनी-अपनी जगह प्रस्थान कर गए । बाहर अँधेरा छा गया था और उसी समय लाईट भी चली गयी, चारों तरफ एक अजीब सा सन्नाटा सा छा गया था । तेज हवा चलने के कारण आश्रम भवन के पीछे लगे हिलते-डुलते लंबे पेड़ काले साये से प्रतीत हो रहे थे और सांय-सांय आवाज कर रहे थे । इसी सन्नाटे को बच्चे लोग अपनी शरारत भंग कर रहे थे ।
हमारे अलावा आश्रम में कुछ और आगंतुक भी रुके थे । सभी लोग विश्रामगृह के बाहर इधर-उधर टहलते, बात करते हुए रसोईघर से खाने के बुलाबे प्रतीक्षा करने लगे । लगभग आधे घंटे बाद रसोईघर से खाने का बुलावा आया तो सभी लोग आश्रम के पीछे की कुछ सीढ़ियाँ उतरकर रसोईघर में पहुँच गए । रसोईघर में जमीन पर बैठने का प्रबन्ध था सो सभी लोगो के बैठने के बाद एक-एक करके खाना परोसा गया, खाने में दाल, दो स्थानीय सब्जी, चावल, सलाद और चपाती थी । यहाँ का खाना हमे पूरी तरह से देशी और बड़ा ही स्वादिष्ट लगा । खाना खाने के पश्चात हम लोग आश्रम से बाहर टहलने चले गए, सोचा की आइसक्रीम खाकर आते हैं । बाहर जाकर देखा तो बिल्कुल सन्नाटा ! एक भी व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था, सारी दुकाने, होटल बंद हो चुके थे, तो आइसक्रीम मिलने की बात छोड़ो । करीब आधा घंटे टहलने के बाद वापिस आये तो देखा की विश्रामगृह के गैलरी का दरवाजा अंदर से बंद था । खूब जोर-जोर खटखटाया कोई फरक नहीं पड़ा, हमने सोचा की अब क्या करे । तभी ख्याल आया की जो लोग यहाँ पर रुके हैं उन्होंने ही अंदर से दरवाजा बंद किया होगा तो उनके कमरे के सामने की तरफ की गैलरी की खिड़की पर जोर-जोर आवाज लगाई और खटखटाया । तब जाकर वो लोग उठे और हम लोग अंदर जा पाए । अगले दिन सूर्योदय देखने के लिए जल्दी उठाना था सो जल्दी से अपने-अपने कमरे ने जाकर सो गए ।
चलिए कुमाऊँ श्रृंखला के इस कौसानी वाले लेख और सफ़र यही विश्राम दे देते है । अगले लेख में कौसानी का सूर्योदय और बाबा शिव का धाम बैजनाथ धाम उत्तराखंड के बारे अपने अनुभव प्रस्तुत करूँगा । अगले लेख तक के लिए आप सभी पाठकों को धन्यवाद और राम -राम ! वन्देमातरम
क्रमशः ………..
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Table of Contents → कुमाऊँ यात्रा श्रृंखला के लेखो की सूची :
5. नौकुचियाताल→ नौ कोने वाली सुन्दर झील ( (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..5)
6. सातताल → कुमाऊँ की सबसे सुन्दर झील (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..6)
7. नैनीताल → माँ नैनादेवी मंदिर और श्री कैंची धाम (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..7)
8. रानीखेत → हिमालय का खूबसूरत पर्वतीय नगर (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..8)
9. कौसानी → प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पर्वतीय नगर (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....9)
10. बैजनाथ (उत्तराखंड)→भगवान शिव को समर्पित अति-प्राचीन मंदिर (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....10)
11. पाताल भुवनेश्वर → हिमालय की गोद में एक अद्भुत पवित्र गुफा (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....11)
12. जागेश्वर धाम → पाताल भुवनेश्वर से जागेश्वर धाम यात्रा (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....12)
13. जागेश्वर (ज्योतिर्लिंग)→कुमाऊं स्थित भगवान शिव का प्रसिद्ध धाम के दर्शन (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....13)
क्रमशः ………..
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Table of Contents → कुमाऊँ यात्रा श्रृंखला के लेखो की सूची :
1. नैनीताल → प्रसिद्ध पर्वतीय नगर की रेलयात्रा (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का..........1)
2. नैनीताल → हिमालय पर्वत का एक शानदार गहना (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का..2)
3. नैनीताल → शहर के देखने योग्य सुन्दर स्थल (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का....3)
4. भीमताल → सुन्दर टापू वाली कुमायूं की सबसे बड़ी झील (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..4) 2. नैनीताल → हिमालय पर्वत का एक शानदार गहना (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का..2)
3. नैनीताल → शहर के देखने योग्य सुन्दर स्थल (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का....3)
5. नौकुचियाताल→ नौ कोने वाली सुन्दर झील ( (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..5)
6. सातताल → कुमाऊँ की सबसे सुन्दर झील (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..6)
7. नैनीताल → माँ नैनादेवी मंदिर और श्री कैंची धाम (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..7)
8. रानीखेत → हिमालय का खूबसूरत पर्वतीय नगर (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का…..8)
9. कौसानी → प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पर्वतीय नगर (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....9)
10. बैजनाथ (उत्तराखंड)→भगवान शिव को समर्पित अति-प्राचीन मंदिर (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....10)
11. पाताल भुवनेश्वर → हिमालय की गोद में एक अद्भुत पवित्र गुफा (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....11)
12. जागेश्वर धाम → पाताल भुवनेश्वर से जागेश्वर धाम यात्रा (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....12)
13. जागेश्वर (ज्योतिर्लिंग)→कुमाऊं स्थित भगवान शिव का प्रसिद्ध धाम के दर्शन (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....13)
14. नैनीताल → खूबसूरत नैनी झील और सम्पूर्ण यात्रा सार (सुहाना सफ़र कुमाऊँ का.....14)
15.आगरा से भीमताल वाया बरेली (Agra to Bhimtal Via Bareilly → Road Review )
16. प्रकृति से एक मुलाक़ात → भीमताल भ्रमण (Bhimtal Lake in Nainital Region)
17. नौकुचियाताल → प्रकृति का स्पर्श (NaukuchiyaTal Lake in Nainital Region )
18. नैनीताल दर्शन → (A Quick Tour to Lake City, Nainital)
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15.आगरा से भीमताल वाया बरेली (Agra to Bhimtal Via Bareilly → Road Review )
16. प्रकृति से एक मुलाक़ात → भीमताल भ्रमण (Bhimtal Lake in Nainital Region)
17. नौकुचियाताल → प्रकृति का स्पर्श (NaukuchiyaTal Lake in Nainital Region )
18. नैनीताल दर्शन → (A Quick Tour to Lake City, Nainital)
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रितेश भाई इस जगह को रुपकुन्ड जाते समय देखा था।
ReplyDeleteबैजनाथ के मन्दिर व मछलियाँ आपकी नजरों से भी देखना है।
Bahut Rochak vivran...Mujhe apna Kausani trip yaad aa gaya...bahut khoobsurat jagah hai ye.
ReplyDelete@Praveen Ji....धन्यवाद.!
Delete@Jatdevta Sandeep ji... धन्यवाद !अब मछलियां आपने देख ही ली होगी मेरी नजरो से...
@Neeraj Goswami....You are most welcome...धन्यवाद
रितेश जी, मुझे इस बात का बहुत ग़म है कि मैं आज तक भी कुमाऊं की तरफ नहीं जा सका हूं! फिलहाल अपने मित्रों की यात्रा के संस्मरण पढ़ - पढ़ कर ही मन खुश कर लेता हूं, पर कभी न कभी जाउंगा जरूर ! उस दिन आपकी ये पोस्ट बहुत उपयोगी सिद्ध होगी ! आपका आभार !
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए आपका बहुत-बहुत आभार....जब भी मौका हाथ लगे जरुर जाइए....
Deleteधन्यवाद
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति----कौसानी की प्राकृतिक सुन्दरता देखने काबिल है --- अपनी कौसानी यात्रा में मैं इस स्थान से पूरी तरह अंजान थी ...बहुत गुस्सा आया जब वहां के लोकल व्यक्ति ने यह कहा की इस आश्रम में कुछ खास देखने को नहीं है ...हमें यहाँ के स्थानों को दिखाने में आलस किया --? पता नहीं क्यों स्थानीय व्यक्ति जगह दिखने में आलस और निराश करते है --हम इतनी दूर से अपने पैसे और समय खर्च करके यहाँ आते है और इनका ऐसा रवय्या ,दिल को दुखी करता है ....बहुत बढ़िया जा रहे हो रितेश ...आगे बढ़ते रहो.
ReplyDeleteधन्यवाद दर्शन जी....| कौसानी बहुत ही सुन्दर हैं.....बाकी आपने आश्रम नहीं देखा..इसका खेद हैं...| सही कहा कभी-कभी स्थानीय वव्यकित का रवैया काफी दुःख पहुचता हैं...|
Deleteधन्यवाद
reeteshg,mai b waha gayi thi kuch saal pahle, yadein taza ho gayi,someshwar ghati ki yatra bahut sukoon dayak hai,khud ki talash me gum hone jaisa..hai na......
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत ही सुन्दर वर्णन , मेरे ख्याल से अनासक्ति आश्रम की एक फोटो ही काफी होती |
ReplyDeleteसादर
बहुत ही रोचक और मनोहारी दृश्य | बधाई गुप्ता जी |
ReplyDeleteकौसानी का मेरा अनुभव बेहतरीन रहा था। अनासक्ति आश्रम के आलावा ये हिंदी के विख्यात कवि सुमित्रानंदनपंत की जन्मस्थली भी है। सुबह की धुंध में पाइन के जंगलों मे् ट्रैकिंग मेरी कुमाऊँ यात्रा के सबसे यादगार लमहों में थे।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट 31 - 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
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बहुत रोचक मनोहारी कुमाऊँ यात्रा प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पर आना सार्थक ,,,,आभार रीतेश जी,,,,
WELCOME TO MY recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
@Aprna...सही कहा खुद की तलाश में इस वादियों में गुम होने जैसा ही अहसास होता हैं....धन्यवाद
ReplyDelete@Akash Mishra...धन्यवाद !
@G.N. Shaw....धन्यवाद !
@Manish Kumar....हमारी भी कौसानी की यात्रा न भुलाए जाने वाली यात्रा थी...| धन्यवाद !
@Dilbag Vikr... चर्चा मंच में शामिल करने के लिए धन्यवाद !
@Dhirendra Singh Bhadoriya... धन्यवाद !
बहुत बढिया वर्णन Ritesh जी,, छोटे बच्चों के संबंध में आपने बिल्कुल सही लिखा,,,हम कौसानी और बैजनाथ को केवल छुए थे,,,अनासक्ति आश्रम और पंत संग्रहालय ,तारामंडल देख कर निकल गए थे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर....कौसानी प्रकृति प्रेमियों के लिए सुन्दर वह मोहक स्थल व अनाशक्ति आश्रम अद्भुत शांति प्रदान करने वाला आश्रम.. कौसानी की मनमोहक छवि मानस पटल...
ReplyDeleteधन्यवाद जी आपका ....
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