Guest Post Written by Anil Dixit
गंगोत्री : हमारा एक फेसबुक ग्रुप है, "घुमक्कड़ी दिल से" इसी नाम से व्हाट्सअप पर भी ग्रुप है । इस ग्रुप में हमारे एक बहुत घुमक्कड़ मित्र है श्री अनिल दीक्षित जी । अनिल जी करावल नगर, दिल्ली के रहने वाले है और इन्हें पहाड़ो पर घूमना और ट्रेकिंग करना बहुत पसंद है । इन्हें जब भी मौका मिलता है तभी ये तूफान की रफ़्तार से घूमने निकल पड़ते है, उत्तराखंड घूमना इन्हें बहुत पसंद है । आज के इस लेख में अनिल जी अपनी लेखनी से हाल ही के दिनों में शीतकाल में भ्रमण की गयी गंगोत्री यात्रा वर्णन कर रहे है । चलिए चलते है गंगोत्री की यात्रा पर अनिल जी की जुबानी : -
गंगोत्री मंदिर ( Gangotri Temple at Winter Time) |
उत्तराखंड की धरती मे कुछ तो खासियत है जो बार बार बुला लेती है।पिछले महीने (4 मार्च 2017) गंगोत्री धाम के शीतकालीन दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। फरवरी मे एक प्लान बना था महाशिवरात्रि पर केदारनाथ जाने का पर परमिशन ना मिलने के कारण जा नही पाये।उसके बाद कौशिक जी को फोन किया कि कहीं तो चलो इसलिये बिना प्रोग्राम बनाये बस निकल पड़े 3 मार्च की रात को 11:30 बजे।रात को निकलने का बस यही फायदा है कि कहीं जाम नही मिलता और सुबह अंधेरे ही ऋषिकेश पहुंच जाते हैं।
कौशिक जी शाम को ऑफिस से निकल कर सादतपुर अपने दोस्त राजकुमार जी के यहां पहुंच गये। यहां से मेरा घर भी पास मे ही है।रात 11 बजे कौशिक जी को फोन किया "मैं घर पहुंच गया हूं आप गोला फैक्ट्री स्टैंड पर मिलो" कौशिक जी को उनके मित्र राजकुमार जी ने अपनी गाड़ी से मेरी बताई जगह पर छोड़ दिया। हमारी यात्रा की शुरुआत हो चुकी है।यात्रा के साथी हैं मैं,कौशिक जी,सुनिल (गग्गू),रिंकू (गग्गू का दोस्त) और अखिलेश आदर्शी।
ड्राइविंग की कमान ऋषिकेश तक गग्गू के हाथों मे है उसके बाद मैं चलाऊंगा।सुबह चार बजे ऋषिकेश पहुंच गये।यहां पहुंच कर थोड़े असमंजस की स्थिति थी कि कहां जायें तब मैने सलाह दी (या ये कहो आदेश दिया)😁 गंगोत्री की तरफ चलते हैं डोडीताल या ब्राह्मीताल ट्रैक कर लेंगे।मैने यहां से गाड़ी अपने हाथों मे ले ली।रोड बिल्कुल खाली पड़ी थी। पांच बजे के करीब हम आगराखाल मे चाय पीने के लिए रूके।आधे घंटे बाद यहां से चल कर चम्बा पार करके स्यालसौड़ मे रूके।अभी सुबह के सात बजे थे और प्रेशर भी जोर मार रहा था।यहीं दो तीन जलपान की दुकानें थी और शौचालय भी बना था।7:30 बजे यहां से फारिग होकर आगे बढ़े।
10:30 बजे हम उत्तरकाशी पहुंच गये। यहां पहुंच कर मैने सन्नी भाई को फोन कर डोडीताल के बारे मे जानकारी ली तो पता लगा रास्ते मे कोई भी दुकान या गांव नहीं है और ना ही हमारे पास स्लिपिंग बैग थे।डोडीताल का प्रोग्राम कैंसिल करके आगे बढ गये।उत्तरकाशी से रोड गंगाजी के साथ साथ ही चलती है।करीब 30 km आगे धरासू बैंड पर गाड़ी रोक दी।यहां से यमुनौत्री और गंगोत्री के रास्ते अलग होते हैं।मन मे यमुनौत्री जाने का विचार आया पर मैने सोचा कि जब यमुनौत्री जाना था तो पहले ही देहरादून होकर आ जाते मन की इच्छा का पल भर त्याग हो गया।😊 अब जोर की भूख लग रही थी यहां गरमा गरम परांठे खाये। धरासू बैंड से मनेरी, भटवारी होते हुए आगे बढे।भटवारी से आगे एक रास्ता बरसू होकर दयारा बुग्याल जाता है यहां गंगोत्री की ओर जाने वाली रोड को चौड़ा कर रहे हैं तो यहां रास्ता बंद मिला। मैने दयारा चलने को कहा तो कौशिक जी ने वहां किसी मंदिर के बारे मे पता किया कि दयारा मे मंदिर हो तो चलें😁 मेरे ना मे सिर हिलाते ही दयारा कैंसिल (आखिर "गंगोत्री धाम" के दर्शन करने थे)😎
थोड़ी देर मे रास्ता खुल गया और हम आगे बढ गये कुछ ही दूरी पर गरम पानी का कुंड *गंगनानी* मे है।यहां बस एक दो दुकानें ही खुली थीं बाकी सब बंद पड़ी थीं।यहां से मां गंगा बांयी ओर बहती हैं जो कुछ दूरी पर लोहारी नागपाला मे फिर दांई ओर हो जाती हैं।अब सामने सुखी टॉप की चढाई पर बर्फ के प्रथम दर्शन हुए।गग्गू बर्फ देखकर बार बार गाड़ी रोकने को कहने लगा पर मैने उसे और ज्यादा बर्फ का लालच देकर चुप करा दिया।
दोपहर मे 2 बजे हम सुखी टॉप के ऊपर थे यहां से गंगोत्री की ओर गंगाजी का चौड़ा पाट दिखाई देता है और उत्तरकाशी की ओर संकरी घाटी जिसे हम पार करके आ चुके थे।चारों ओर के पहाड़ों पर बिल्कुल ताजी बर्फबारी हो रही थी।जो थोड़ी देर मे हमारे ऊपर भी होने लगी। मैं चाय पीने चला गया और कौशिक जी गग्गू के साथ फोटो (खुदखेंची) लेने मे मशगूल हो गये। चाय पीने और दुकानदार से ब्राह्मीताल की जानकारी लेने के बाद मैने गाड़ी मे बैठने को कहा।हम चारो गाड़ी मे धंस गये। कौशिक जी के पूछने पर मैने बताया कि अभी गंगोत्री दर्शन करके वापिस आयेंगे अगर बर्फबारी रूक गयी तो ब्राह्मीताल चलेंगे।
ब्राह्मीताल 4000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।यहां गंगोत्री की तरफ की चोटियां और यमुनोत्री की तरफ काला नाग स्वर्गारोहिणी आदि के शानदार नजारे दिखते हैं।यह जसपुर बैंड (सुखी टॉप से थोड़ा आगे) से 14 km दूर है जिसमें 5 km आगे पुराली गांव पड़ता है।पुराली से ब्राह्मीताल तक कुछ नही मिलता।ब्राह्मीताल मे ही एक बाबाजी का निवास है ऐसा लोकल बंदो से पता लगा।इस ट्रैक को उत्तराखंड सरकार ने "ट्रैक ऑफ द इयर" घोषित किया है पर इसके बारे ज्यादा जानकारी या सुविधायें नहीं दीं। हमारा प्रोग्राम गंगोत्री से लौट कर रात को पुराली मे रूकने और अगले दिन सुबह जल्दी निकल कर दोपहर बाद तक वापिस दिल्ली की ओर लौटने का था।
सुखी से आगे झाला पुल पार करके हम हर्षिल घाटी मे प्रवेश कर चुके थे।रोड के किनारों पर भी बर्फ जमी थी और रोड फर जमी बरफ को मजदूर हटाने मे लगे हुए थे।यहां से धराली,लंका घाटी, भैरों घाटी होते हुए हम मोक्षदायिनी मां गंगा के दरबार मे पहुंच चुके थे।
4 बज चुके थे अब बर्फबारी तेज हो गयी थी तो भागकर गाड़ी मे लद गये।गाड़ी घुमा कर वापिस चलने लगे तो गग्गू अखिलेश रिंकू का मन ताजी बर्फबारी मे फोटो खिचाने का हो गया तो कौशिक जी कैसे पीछे हटते रूकवा दी मेरे से गाड़ी। गंगोत्री और भैरोंघाटी के बीच से एक रास्ता नेलांग वैली के लिए जाता है।यहां चेकपोस्ट बनी हुई है।अपने फौजी भाइयों से राम राम करके कुछ जानकारी ली।
गंगोत्री नेशनल पार्क इस साल मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही खुल जायेगा।नेलांग वैली जाने के लिए परमिशन भी उत्तरकाशी मे एक ही काउंटर से मिलने की उम्मीद है।यहां अभी SUV और 4×4 गाड़ियों को जाने की परमिशन है। यहां से आगे चले तो हर्षिल मे फिर बर्फ मे मस्ती करी। मुखबा गांव जाने का मन था पर मौसम को देखते हुए प्रोग्राम रद्द कर दिया । मुखबा मे मां गंगा का शीतकालीन प्रवास होता है। शाम पांच साढे पांच बजे हम वापिस सूखी टॉप पहुच गये।बर्फबारी अभी हो ही रही थी तो ब्राह्मीताल ट्रैक कैंसिल कर दिया और वापिस चल पड़े।
अभी तीन बजे थे और गंगोत्री मे भी बर्फबारी हो रही थी।हमने गाड़ी खड़ी करी तो वहां एक यूके नंबर टैक्सी पहले से खड़ी थी। गाड़ी देखकर वो बंदा बाहर निकल आया और पांडव गुफा की ओर ना जाने की सलाह देते (जिसे हमने माना भी) हुए कहा कि यहां से जल्दी निकल जाना मौसम खराब हो रहा है रोड़ बंद हो गयी तो फंस जाओगे। हम पार्किंग से निकल कर बंद पड़ी मार्किट मे से सीधे मंदिर के प्रांगण मे पहुंचे।अपने जूते उतार कर बंद पड़े मंदिर के बाहर से मां गंगा को नमन किया ओर सीढीयों पर खड़े होकर ग्रुप के बैनर के साथ फोटो खिंचाया।मंदिर के ठीक सामने चबूतरे पर एक पक्की कुटिया बनी हुई है इसके बराबर मे ही भोलेनाथ की मूर्ति लगी हुई है। कुटिया खुली देख उसमे झांका तो एक बाबाजी बैठे दिखाई दिये हमने उनके साथ फोटो खिंचाये।उन्होंने चाय के लिए पूछा तो मैं मना नही कर पाया।
चाय की चुस्कियों के साथ बातचीत होने लगी। हमने उनसे कुटिया के बाहर लिखी *सीमांत प्रहरी बढेरे* मे बढेरा का अर्थ पूछा तो उन्होंने बताया कि जब गंगोत्री धाम की यात्रा पैदल हुआ करती थी तब हम लोग (बढेरे) जत्थों के आगे चला करते थे।तभी से हमें बढेरा कहा जाता है।अब मंदिर तक रोड़ बन गयी है तब भी हम परम्परानुसार मां गंगा के प्रांगण मे साल भर रहते हैं। इन बाबाजी का नाम शायद मनोहर है।
बाबाजी से बातचीत करने पर मालूम हुआ कि गंगाजी के उस पार एक गुजराती धर्मशाला है वहां रात्रि विश्राम और खाने की व्यवस्था हो सकती है। चाय पे चर्चा करके खराब मौसम को देखते हुए बाबाजी को अपनी श्रद्धानुसार दान देकर विदा ली।जहां पार्किंग मे हमारी गाड़ी खड़ी थी वहीं से सीढीयां उतर कर नीचे सूर्यकुंड है जिसे देखने को मैं बहुत लालायित था।सूर्यकुंड मे मां गंगा गौमुख से और केदार गंगा केदारताल से आकर मिल जाती हैं।सूर्यकुंड से छोटी सी संकरी घाटी पार करके गौरीकुंड है।इससे आगे बढने पर रूद्रगैरा से रूद्रगंगा और नेलांग वैली से नीलगंगा आकर भागीरथी मे मिलती हैं।
सुक्खी से चले तो 7:30 के आसपास उत्तरकाशी पहुंच गये। कौशिक जी ने होटल लेने को कहा तो मैंने रात 11 बजे तक ऋषिकेश जाकर रूकने को बोला। उत्तरकाशी से आगे चले तो भूख लगने लगी अब गाड़ी दोबारा धरासू बैंड पर उसी ढाबे पर लगा दी।ऑफ सीजन मे यात्रा रूट पर खाना अच्छा मिलता है राजमा चावल और आलू गोभी की सब्जी रोटी खाकर तृप्त हो गये। कौशिक जी ने मुझसे आगे का पता करा तो मैने उन्हें दो घंटे मे चम्बा और वहां से एक डेढ घंटे मे ऋषिकेश पहुंच जाने का आश्वासन दिया। रात 10 बजे मैने कमांद मे गाड़ी रोक दी कि मुझे नींद आ रही थी।बाकी सब भी जगने की हालत मे नही थे। यहां कोई होटल ढाबा तो खुला हुआ नही था तो थोड़ी देर रूक कर गाड़ी मे ही दो घंटे की नींद खींच ली। रात 12 बजे करीब मेरी आंख खुली और मुंह धोकर दोबारा स्टियरिंग संभाल लिया।
रात 1:30 बजे चम्बा पहुंचे जहां पुलिस वालों ने बैरियर लगा रखा था।उन्होने वहां से 4 बजे तक आगे नही जाने को बोला।कौशिक जी और अखिलेश रिक्वेस्ट करने गये तब भी उन्होने बिल्कुल मना करके वापिस भेज दिया।अब उन्होने मुझे कागज लेकर अंदर चौकी मे बुलाया।मेरे अंदर से आते ही बैरियर खुल गया।कौशिक जी को बाद मे पता लगा कि मैने उन्हें 100 रूपये दिये थे रात मे ही निकलने के लिए।यहां से सुबह 4 बजे ऋषिकेश पहुंचे और 4:30 बजे हरिद्वार पहुंच कर गंगा स्नान किया।
सुबह 6 बजे स्नानादि से निवृत्त होकर चले।अब गाड़ी गग्गू के हाथ मे थी।10:30 बजे मे दिलशाद गार्डन मेट्रो स्टेशन पर कौशिक जी और अखिलेश को छोड़ दिया।यहां से कौशिक जी सोनीपत निकल गये।
कथा समाप्त
हर - हर गंगे
इस तरह शुक्रवार रात 11:30 बजे घर से शुरू हुई यात्रा करीब 36 घंटे बाद रविवार दोपहर 11 बजे तक घर पहुंच कर समाप्त हुई।🙏🙏🙏
चलिए अब देखते इस सुन्दर स्थल को चित्रों की जुबानी →
गंगोत्रीका बंद पड़ा हुआ बाजार (Gangotri Market) |
गंगोत्री का प्रवेश द्वार (Entrance Gate Gangotri) |
संजय कौशिक जी स्वान के साथ फोटो खिचवाने की मुद्रा में |
संजय कौशिक जी आराम फरमाते हुए गंगोत्री मंदिर में |
घुमक्कड़ी दिल से का बैनर गंगोत्री मंदिर के द्वार डर (मै अनिल और संजय कौशिक जी ) |
गंगोत्री से नजर आते पहाड़ और बर्फ के संगम से नज़ारे |
गंगोत्री से नजर आते पहाड़ और बर्फ के संगम से नज़ारे |
गंगोत्री से नजर आते पहाड़ और बर्फ के संगम से नज़ारे |
गंगोत्री से नजर आते पहाड़ और बर्फ के संगम से नज़ारे |
गंगोत्री धाम |
गंगोत्री नदी |
गंगोत्री में सूर्य कुंड के पास का द्रश्य |
गंगोत्री का सूर्य कुंड और बहती हुई गंगोत्री नदी ( Surya Kund at Gangotri) |
गंगोत्री का सूर्य कुंड और बहती हुई गंगोत्री नदी ( Surya Kund at Gangotri) |
गंगोत्री का सूर्य कुंड और बहती हुई गंगोत्री नदी ( Surya Kund at Gangotri) |
गंगोत्री की धर्मशालाए |
रास्ते में लोहे के पुल पर कौशिक जी |
रास्ते में नजर आते नयनाभिराम द्रश्य |
चलिए उपरोक्त जानकारी के साथ गंगोत्री के इस इस लेख का समापन करता हूँ । आशा करता हूँ , आपको इस नई जगह के बारे पढ़कर अच्छा लगा होगा । अगले भाग में आप लोगो को ले चलेंगे नये स्थल की सैर पर । इसी के साथ आप सभी बहुत बहुत धन्यवाद ।
(C)अनिलदीक्षित
मैराथन यात्रा, हर हर गंगे।
ReplyDeleteमैराथन वाले सांस तो ले लेने देते हैं ये अनिल तो ना साँस लेने देता हैं ना नींद... :) लेकिन ये है बस याता होती "दिल से" है
Deleteधन्यवाद प्रभु 💓 से
Deleteभाई “कौशिक जी” तो ऐसे लिख देते हो जैसे जगत प्रसिद्ध हस्ती हों कोई ;), एक बार तो "संजय कौशिक" लिख देते पता तो चले कौन “कौशिक जी”
ReplyDeleteभाई "गंगोत्री धाम" के दर्शन करने थे नहीं ये कहो गंगोत्री धाम के दर्शन “होने थे”, करना अपने हाथ में होता तो कब के कर चुके होते ;)
ऐसे मौसम में चाय पीने से ज्यादा आनंद चाय हाथ में लेकर बैठने का आता है और वो चाय ख़त्म करने से पहले हमने गंगोत्री मंदिर में लिया भी
अनिल भाई बहुत बढ़िया पोस्ट सुंदर चित्रों ने एक बार फिर पूरी यात्रा कि यादें ताज़ा कर दीं ...
#"दिल से" मज़ा आ गया पढ़ कर... और देख कर...
सब जानते हैं कौशिक जी कौन हैं😀😀
DeleteWelcome to Blogging Dear Anil. Post is good with beautiful pictures
ReplyDeleteधन्यवाद सहगल साहब
Deleteवाह भाई , पढ़ते हुए कभी लगा ही नही कि आपने पहली बार लिखा है । बढ़िया लिखा ,पूरे दिल से लिखा ।
ReplyDeleteहर हर गंगे !
आशीर्वाद बनाये रखिए प्रभु
Deleteबहुत बढ़िया गजब यात्रा दिल से
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
Deleteशिक जी अपने एडमिन हैं, अब इतना सम्मान तो बनता ही है, बाकि बढ़िया शुरू कर दिया अनिल जी
ReplyDeleteअनिल भाई बहुत बढ़िया शुरुआत की है पारी की । यात्रा लेख किसी नए खिलाडी का नहीं लग रहा था ऐसा लग रहा पहले भी रणजी में छक्के मार चुके है । आपकी और संजय कौशिक जी की राम लखन जोड़ी घुम्मकड़ी के 20:20 में एक नया अध्याय जोड़ दी ।
ReplyDelete#घुम्मकड़ी दिल से
अच्छा लगा पढ़ कर.. इसी तरह भविष्य में लिखते रहे।
ReplyDeleteMast....dil se....
ReplyDeleteमज़ा आ गया। अब मेरा मन भी इधर जाने को ललायित हो रहा है। उम्मीद है जल्द ही दौरा लगेगा।
ReplyDeleteBhaut accha varnan , pehla blog likha hai lekin paripkvta kafi hai. shandar pictures
ReplyDeleteबहुत ही जानकारी से भरपूर और उम्दा लेखन के साथ आपको पहली पोस्ट की बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteअनिल भाई ....लगता नहीं की पहली बार लिखा है..
ReplyDeleteबहुत अच्छा और विस्तृत लिखा है आपने ...
चित्रों में सुधार की गुंजाइश है ..जो आपने चित्र भेजे थे वो कुछ कम क्वालिटी के थे ...
#दिल से
बहुत सुन्दर , कृपया गंगा जी के लिए नदी शब्द का प्रयोग न करे
ReplyDeleteबढिया लिखा... घुमक्कडी जिंदाबाद
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब लिखा है। हिमालय का प्रथम दर्शन मैंने उत्तराखंड में ही की थी, और उस वक़्त सिर्फ उत्तरकाशी में एक ट्रैक करने गया हुआ था, बछेंद्री पाल के नेतृत्व में। पर बंधे-बंधाये कार्यक्रम के कारण आगे गंगोत्री वगेरह नहीं जा पाए थे। देखते हैं भविष्य में कब मौका मिलता है।
ReplyDeleteऔर हाँ, आपने पहली ही बार में बड़ा गजब लिखा।
#घुमक्कड़ी दिल से
यह यात्रा भी पढने मे दिल धड़कन को तेज कर देता है ।तस्वीर आपकी कहानी को बडी खूबसूरती से बयां कर रही है ।
ReplyDeleteमज़ा आ गया।
ReplyDeleteअति सुंदर लेख
ReplyDeleteलगा कि बर्फ से खेल रहे आपके साथ😁
वाह गुरुदेव शानदार
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